Navratri Day 8: महागौरी माता की पूजा की मुख्य वस्तुएं और प्रसिद्ध मंदिर

डीएन ब्यूरो

नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा का विधान है। जानें भारत में मौजूद महागौरी माता के प्रमुख मंदिर के बारे में। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

महागौरी माता
महागौरी माता


नई दिल्ली: नवरात्रि का आठवां दिन मां महागौरी (Mahagauri) की पूजा को समर्पित होता है। इस दिन को अष्टमी (Ashtami) के नाम से भी जाना जाता है और इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। देवी महागौरी को शक्ति और पवित्रता की देवी माना जाता है। मान्यता है कि उनकी पूजा से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सुख-समृद्धि की होती है प्राप्ति 

देवी महागौरी का वर्ण पूर्ण रूप से श्वेत है, इसी कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है। इनके चार हाथ होते हैं, जिनमें वे त्रिशूल और डमरू धारण करती हैं, जबकि एक हाथ में वरमुद्रा और दूसरे में अभयमुद्रा होती है। देवी सफेद रंग की वेशभूषा में सजी होती हैं और बैल पर सवार होती हैं। महागौरी के पूजन से भक्तों को मानसिक शांति, शुद्धता और पारिवारिक सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

पूजा का है विशेष महत्व

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अष्टमी की पूजा में देवी महागौरी की विधिवत पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन भक्त देवी को सफेद फूल, फल, नारियल, हल्दी, चंदन, और विशेषकर सफेद कपड़े अर्पित करते हैं। इस दिन कन्या पूजन का भी बहुत महत्व है। इसे कंजक पूजन भी कहा जाता है, जिसमें 9 कन्याओं और एक बालक को देवी का रूप मानकर भोजन कराते हैं। उन्हें हलवा-पूरी और चने का प्रसाद दिया जाता है। साथ ही, कन्याओं को उपहार और दक्षिणा भी दी जाती है।

सभी परेशानियाँ हो जाती हैं दूर

यह दिन विशेष रूप से घर की स्त्रियों के लिए होता है, क्योंकि महागौरी को गृहलक्ष्मी भी कहा जाता है। जो महिलाएं इस दिन सच्चे मन से देवी की उपासना करती हैं, उन्हें वैवाहिक जीवन में सुख और शांति प्राप्त होती है। महागौरी की कृपा से जीवन में आने वाली सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं।

महागौरी माता का प्रसिद्ध मंदिर

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महागौरी माता का मंदिर काशी में स्थित है। इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जब माता गौरी भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं। वो तपस्या के चलते कृष्ण वर्ण हो गई, लेकिन बाद में भगवान शिव ने गंगाजल से मां को गौर वर्ण कर दिया। इसके बाद मां पार्वती को देवी महागौरी का नाम मिला और काशी में विराजमान हो गई।

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