सोनभद्र: प्रधानमंत्री के जन आरोग्य योजना की खुली पोल, आदिवासी मरीजों का हो रहा है शोषण
देश के प्रधानमंत्री मोदी जन आरोग्य योजना के अंतर्गत गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने का वादा कर रहे हैं लेकिन नीति आयोग द्वारा घोषित देश के 115 अति पिछड़ा जिलों में इसकी पहुंच नहीं दिख रही है। यहां के नक्सल क्षेत्रो में चिकित्सक गरीब आदिवासी मरीजों का शोषण कर रहे हैं। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट
सोनभद्र: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जन आरोग्य योजना के अंतर्गत गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने का वादा करे रहे हैं लेकिन दूर-दराज के अति पिछड़ा जिलों में इसकी पहुंच नहीं दिख रही है। नीति आयोग द्वारा घोषित देश में करीब 115 अति पिछड़ा जिला हैं। इसमें सोनभद्र भी शामिल है। अति नक्सल प्रभावित व आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं इस योजना की पोल खोल रही हैं। स्वास्थय सुविधाएं यहां ध्वस्त हो चुकी हैं। जहां सुविधा है वहां भ्रष्टाचार है। आलम यह है कि यहां के नक्सल क्षेत्रो में चिकित्सक गरीब आदिवासी मरीजो का शोषण कर रहे हैं।
चिकित्साधीक्षक डॉ. दिनेश कुमार सिंह करते हैं मरीजों का शोषण
दिनेश कुमार सिंह जिले के नक्सल प्रभावित नगवां ब्लाक के समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक हैं। उनके मरीजों कि शिकायत है कि वे नसबंदी कराने आए मरीजों का शोषण करते हैं। मरीजों का कहना है कि वे नसबंदी कराने आई औरतों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। 30 बेड का स्वास्थय केंद्र होने के बावजूद एक दिन में 40 से 70 महिलाओं की नसबंदी की जाती है। महिलाओं को ओपरेशन के बाद तुरंत घर भेज दिया जाता है। एक एम्बुलेंस में 4 से 6 महिलाओं को भेजा जाता है। यहां तक कि इन महिलाओ को दवा बाहर से खरीदने के लिए कहा जाता है। महिलाओं की शिकायत है कि यहां के चिकित्सक तानाशाह हो चुके हैं। बिजली और जनरेटर होने के बावजूद भी वार्डो और गलियारों में बल्ब नहीं जलवाते हैं।
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मौके पर मौजूद डाइनामाइट संवाददाता ने नसबंदी कराने आई महिलाओं और उनके परिजनों से बात की। नसबंदी कराने आई महिला के साथ आए एक परिजन ने कहा, “सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र 30 बेड का है जबकि यहाँ के डॉक्टर मंगलवार और शुक्रवार को एक दिन में 40 से 70 महिलाओ की नसबंदी करते हैं। नसबंदी करने के बाद चिकित्सक बाहर से दवा लिखने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे देते हैं।”
परिजनों का कहना है कि वे दूर दराज के इलाके से आते हैं लेकिन यहां कोई सुविधा नही है। डाक्टर बाहर की दवा लिखते है और ठंड में ओढ़ने के लिए कम्बल भी नही देते। डाक्टर नसबंदी के बाद घर ले जाने के लिए कहते हैं जबकि पहाड़ी इलाके में जाने से टांका भी टूटने का डर बना रहता है।
चिकित्साधीक्षक का क्या कहना है
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इस पर अधीक्षक का कहना है कि एक दिन में 40 महिलाओ का रजिस्ट्रेशन किया जाता है, नसबंदी नहीं होती है। किसी को बाहर की दवा लिखे जाने की बात से वे साफ इनकार करते हैं जबकि एक ऐम्बुलेंश मे चार से पांच मरीजों को भेजने की बात भी वे स्वीकार नहीं करते। वहीं नसबंदी के लिए प्रेरित करके समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लाने के लिए अहम भूमिका निभाने वाली आशा बहुओं का कहना है कि नसबंदी के लिए एक महिला पर उन्हें तीन सौ रुपये मिलते हैं।
आशा सोनू सिंह का कहना है नसबंदी के बाद परिजन घर जाने की जिद्द करते हैं। इस कारण उन्हें ऐम्बुलेंश से भेज दिया जाता है। वार्ड में अंधेरा होने के सवाल पर आशा कहती हैं कि बिजली रहती है तो लाईट जलती है और जो लोग कम्बल मांगते हैं उन्हें दिया जाता है लेकिन बहुत से लोग कम्बल ही घर लेकर चले जाते हैं।