Kolkata: अफस्पा बढ़ाना संकट का समाधान नहीं, भड़की आयरन लेडी ,भाजपा मुद्दों को हल करने की इच्छुक नहीं

डीएन ब्यूरो

मणिपुर के अधिकतर हिस्सों में सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (अफस्पा) लागू किए जाने के एक दिन बाद अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने कहा कि राज्य में जारी संघर्ष का हल ‘‘दमनकारी कानून’’ से नहीं निकलेगा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला
अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला


कोलकाता: मणिपुर के अधिकतर हिस्सों में सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (अफस्पा) लागू किए जाने के एक दिन बाद अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने कहा कि राज्य में जारी संघर्ष का हल ‘‘दमनकारी कानून’’ से नहीं निकलेगा।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार शर्मिला को मणिपुर की ‘आयरन लेडी’ के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने  कहा कि केन्द्र की भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार को विविधता का सम्मान करना चाहिए न कि समान नागरिक संहिता जैसे प्रस्तावों के जरिए एकरूपता लाने की दिशा में काम करना चाहिए।

मणिपुर में अफस्पा को अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। इंफाल घाटी के 19 थानों तथा पड़ोसी राज्य असम से सीमा साझा करने वाले एक इलाके को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।

शर्मिला ने कहा, ‘‘ अफस्पा के दायरे में विस्तार राज्य में जातीय हिंसा अथवा अन्य समस्याओं का हल नहीं है। केन्द्र और मणिपुर सरकार को क्षेत्र की विविधता का सम्मान करना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न जातीय समूहों के मूल्यों, सिद्धांतों और प्रथाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है, लेकिन केंद्र सरकार और भाजपा की दिलचस्पी समान नागरिक संहिता जैसे प्रस्तावों के जरिए एकरूपता बनाने में अधिक है।’’

शर्मिला ने प्रश्न किया कि मई में राज्य में हिंसा भड़कने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य का दौरा क्यों नहीं किया।

अधिकार कार्यकर्ता ने कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री मोदी देश के नेता हैं। अगर उन्होंने राज्य का दौरा किया होता और लोगों से बात की होती तो अब तक समस्या का हल हो गया होता। इस हिंसा का हल करुणा, प्रेम और मानवीय संवेदनाओं में निहित है। लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा मुद्दों को हल करने की इच्छुक नहीं है और चाहती है कि समस्या बनी रहे।’’

मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की आलोचना करते हुए शर्मिला ने कहा,‘‘ राज्य सरकार की गलत नीतियों ने मणिपुर को अभूतपूर्व संकट की ओर धकेल दिया है।’’

शर्मिला ने कहा कि जातीय हिंसा में राज्य के युवाओं को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि हाल में एक युवक और युवती की मौत की घटना ने उन्हें व्यथित किया है।

उन्होंने इस पूर्वोत्तर राज्य में महिलाओं की स्थिति को लेकर भी केंद्र पर निशाना साधा।

अधिकार कार्यकर्ता ने कहा, ‘‘ मणिपुर की महिलाएं अफस्पा और जातीय हिंसा का दंश झेल रही हैं। अगर हम महिला की गरिमा की रक्षा नहीं कर सकते तो महिला सशक्तीकरण पर बातें करने और महिला आरक्षण विधेयक से कुछ नहीं होने वाला। क्या मणिपुर की महिलाएं मुख्य भू-भाग भारत की महिलाओं से अलग हैं? हम अलग दिखते हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे साथ अलग तरह से बर्ताव किया जाए।’’

शर्मिला ने राज्य से अफस्पा हटाने की मांग को लेकर 16 वर्ष तक भूख हड़ताल की थी।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हमें औपनिवेशिक काल के इस कानून को कब तक ढोना चाहिए? उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किये गये, जिनका उपयोग पूरे पूर्वोत्तर के विकास में किया जा सकता था। महीनों से इंटरनेट बंद है, बुनियादी अधिकार छीन लिए गए हैं। अगर मुंबई या दिल्ली में कानून व्यवस्था की समस्या हो तो क्या आप वहां अफस्पा लगा सकते हैं?’’

शर्मिला ने 2000 में इंफाल के पास मालोम में एक बस स्टॉप पर सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर दस नागरिकों की हत्या किए जाने के बाद अफस्पा के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू की थी।










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