DN Exclusive: उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के 54वें जन्मदिन पर झूमे समर्थक, जानिये संघर्षों से भरे सियासी सफर की कहानी

डीएन संवाददाता

उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री, भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सांसद केशव प्रसाद मौर्य का आज 54 वां जन्मदिन है। आज, देश भर से भाजपा के कार्यकर्ता अपने नेता को जन्मदिन की बधाईयां और शुभकामनायें दे रहे हैं। इस खास मौके पर डाइनामाइट न्यूज़ की इस विशेष रिपोर्ट में जानिये उनके सियासी सफर के बारे में।

केशव प्रसाद मौर्य का जन्मदिन आज
केशव प्रसाद मौर्य का जन्मदिन आज


लखनऊ/प्रयागराज: जनता के बीच गहरी पैठ बनाये रखने में निपुण, खेती-किसानी की पृष्ठभूमि और जमीन से जुड़े नेता यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का आज 54वां जन्मदिन है। सियासत के दिग्गज सितारे, गणमान्य लोग, आम जनता और उनके प्रशंसक सुबह से ही उनको सोशल मीडिया समेत तमाम माध्यमों से जन्मदिन की बधाई दे रहे है। उनको आरोग्य और चिर सफल जीवन की शुभकामनाएं देने वालों का तांता लगा हुआ है। जन्मदिन के इस खास मौके पर डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट हम आपको बता रहे हैं केशव प्रसाद मौर्य के पूरे सियासी सफर के बारे में।

संघर्षों भरा रहा है सियासी सफर

एक साधारण पृष्ठभूमि से अपने सफर की शुरूआत करने वाले केशव प्रसाद मौर्य का सबसे मजबूत पक्ष यह माना जाता है कि वे राजनीति में अपने प्रतिद्वदियों से लोहा लेने से कभी नहीं चूकते। उन्हें चुनौतीपूर्ण अवसरों को खोजने और उन्हें अपने अनुकूल बनाकर सफल होने में भी माहिर माना जाता है। 

चुनौतियों से लोहा लेने में माहिर

चुनौतियों से लोहा लेना केशव प्रसाद मौर्य की सबसे बड़ी आदतों में शामिल है। अपने सियासी सफर की शुरूआत भी उन्होंने वर्ष 2002 में अपनी इसी खास आदत से किया औऱ सबको चौका दिया। ये जानकर हर कोई हैरान हो सकता है कि हाल ही में प्रयागराज में तीन हमलवारों की गोलियों का शिकार बने कुख्यात गैंगस्टर, मोस्ट वांटेड और माफिया अतीक अहमद के खिलाफ मौर्य ने अपना पहला चुनाव लड़ा था।

अतीक अहमद के खिलाफ लड़ा चुनाव 

उन्होने चुनाव लड़ने के लिये अपना पहला क्षेत्र इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट और पहला राजनीति प्रतिद्वंदी कुख्यात माफिया अतीक अहमद को चुना। वो भी तब, जब इलाहाबाद पश्चिमी ही नहीं बल्कि यूपी के दूर-दूर तक के क्षेत्रों में अतीक अहमद का दबदबा हुआ करता था और बाहुबली होने के कारण उसकी जीत भी सुनिश्चित मानी जाती थी। 2002 के इस चुनाव में वे महज 7 हजार वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे। अतीक के खिलाफ पहला चुनाव हारने पर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अगले विधान सभा चुनाव 2007 में अपने गृह क्षेत्र सिराथू से चुनाव लड़कर और जीतकर पहली बार यूपी विधानसभा में पहुंचे। विरोधी लहर के कारण वे भाजपा के इकलौते ऐसे विधायक थे, जिन्होने उस समय इलाहाबाद मंडल के चारों जिलों इलाहाबाद प्रतापगढ़ कौशाम्बी और फतेहपुर से जीते।

लगातार बढ़ता गया कद

इसके बाद उन्होंने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा और राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को लगातार मात देकर आगे बढ़ते रहे। समय के साथ पार्टी और जनता में उनका कद लगातार बढ़ता गया। समय-समय पर उन्हें सरकार और संगठन में कई महत्वपूर्ण पद और चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारियां मिलती रहीं, जिनको उन्होंने बखूबी निभाया।   

दिल्ली तक दमदार पहुंच

केशव प्रसाद मौर्य यूपी के इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्हें योगी 2.0 सरकार में लगातार दूसरी बार नंबर दो यानी डिप्टी सीएम का महत्वपूर्ण पद दिया गया। दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व तक भी उनकी दमदार पहुंच हैं और आये दिन वे पीएम नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष समेत कई वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात करते रहते हैं और चुनावी चर्चाओं और रणनीति बनाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। 

कुशल संगठनकर्ता

छोटी उम्र से, मौर्य आरएसएस और वीएचपी-बजरंग दल में शामिल थे, जो नगर कार्यवाह और वीएचपी प्रांत संगठन मंत्री जैसी भूमिकाओं में काम कर रहे थे। वह राम जन्मभूमि और गोरक्षा (गौ रक्षा) आंदोलनों के प्रबल सदस्य भी थे। मौर्य ने किसान मोर्चा और पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ दोनों के लिए भाजपा के क्षेत्रीय (काशी) समन्वयक के रूप में कार्य किया है।

मां गृहिणी तो पिता किसान

मौर्य का जन्म 1969 में इलाहाबाद से सटे कौशाम्बी जिले के सिराथू में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद में हिंदू साहित्य सम्मेलन में हिंदी साहित्य का अध्ययन किया। उनकी मां गृहिणी हैं, जबकि उनके पिता किसान थे, जिनका सिराथू नगर में चाय का कारोबार था। सुमित्रा देवी, कमलेश कुमारी और आशा देवी उनकी तीन बहनें हैं, और सुख लाल और राजेंद्र कुमार उनके दो भाई हैं। 

2017 में दिलायी यूपी में सबसे बड़ी जीत

चाहे विधायक का पद हो या फिर सांसद का हर पद को सुशोभित करने वाले केशव प्रसाद मौर्य की सबसे बड़ी परीक्षा थी 2017 का विधानसभा चुनाव। तब वे राज्य भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। उन्हीं के नेतृत्व में राज्य भाजपा ने 325 सीटें जीतकर 15 साल बाद सत्ता में काबिज हुई और वो भी पूर्ण बहुमत की सरकार के साथ।










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