महाभारत काल से है सीधा संबंध खाटू श्याम भगवान का, जाने बाबा खाटू श्याम के जीवन के बारे में अनसुनी बातें

डीएन ब्यूरो

खाटू श्याम भगवान कलियुग के लोकप्रिय और सबसे ज्यादा पूजे जाने भगवानों में से एक हैं। आज के समय में सभी भक्तों में खाटू श्याम को लेकर एक गहरी आस्था है। डाइनामाइट की रिपोर्ट में पढ़िऐ खाटू श्याम भगवान के बारे में कुछ अनसुनी बातें।

महाभारत काल से है सीधा संबंध खाटू श्याम भगवान
महाभारत काल से है सीधा संबंध खाटू श्याम भगवान


नई दिल्ली: खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान के सीकर में स्थित है। खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिरो में से एक है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ती सच्चे मन से खाटू श्याम भगवान द्वार पर आता है वह खाली हाथ वापस नहीं जाता है। और इनके दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है। 

कैसे है खाटू श्याम भगवान का महाभारत से संबंध

हिडिंबा और भीम की कथा महाभारत के वन पर्व में प्रस्थित है। दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया था। लेकिन किसी तरह पांडव वहां से बचकर निकल गए और अपने प्राणों की रक्षा हेतु वन में रहने लगे।

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हिडिंबा एक राक्षसी थी जो अपने भाई हिडिंब के साथ रहती थी। भीम और हिडिंबा का प्रसिद्ध युद्ध महाभारत के वनवास के दौरान हुआ। जब हिडिंबा ने भीम को देखा तो वो उस पर मोहित हो गई। हिडिंबा भीम के प्यार में पड़ गई और उनके साथ विवाह करने की इच्छा जाहिर की। वह भीम को पति के रूप में पाना चाहती थी। भीम ने माता कुंती की इच्छा का सम्मान करते हुए हिडिंबा के प्रेम को स्वीकार किया। दोनों का विवाह हुआ जिससे घटोत्कच का जन्म लिया।


बर्बरीक कौन थे

बर्बरीक घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक एक पांडव योद्धा थे, जो महाभारत युद्ध के समय के दिग्गज योद्धाओं में से एक थे। उनका विक्रम और योद्धा धर्म के प्रति प्रसिद्ध था। बर्बरीक  देवी दुर्गा का परम भक्त थे। बर्बरीक पर देवी दुर्गा की अति कृपा थी। देवी दुर्गा की पूजा अर्चना से बर्बरीक को तीन दिव्य बाण की प्राप्ति हुई जो अपने लक्ष्य को साधकर वापस लौट आते थे। महाभारत के युद्ध के समय बर्बरीक ने प्रण लिया कि जो इस युद्ध में हारेगा वह उनकी तरफ से लड़ेंगे। श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध स्थल पर आ गया तो पांडवों की हार तय है।

बर्बरीक ने किया अपने शीश का बलिदान
भक्तों की खाटू श्याम मंदिर में इतनी आस्था है कि वह अपने सुखों का श्रेय उन्हीं को देते हैं। बर्बरीक को महाभारत के युद्ध करने से रोकने के लिए कृष्ण भेस बदकल उसके सामने उपस्थित हुए और उससे अपनी वीरता का एक नमूना दिखाने का आग्रह किया।

उनकी आज्ञा लेकर बर्बरीक ने एक बाण चलाया जिससे पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया। तभी श्री कृष्ण ने एक पत्ता पैर के नीचे छुपा लिया था यह सोचकर कि इसमें छेद नहीं होगा लेकिन तीर सीधे कृष्ण के पैर पर जाकर रूक गया।

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बर्बरीक ने उनसे कहा की हे महात्मा अपने पैर को हटाइए नहीं तो ये बाड़ आपके पैर को भी भेद देगा ।

श्रीकृष्ण बर्बरीक की इस बात से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा की मैं आपकी वीरता से बहुत प्रशन्न् हूँ और आपसे एक दान की अपेक्षा और करता हूँ ।

बर्बरीक दान देने के लिए सज्य हो गए। और तभी साधु के भेस में आए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान देने के लिए कहा, यह बात सुनकर बर्बरीक थोड़ा सा  अचंभित हुए लेकिन बिना कुछ भी सोचे उन्होंने अपना शीश श्रीकृष्ण को दान में दे दिया।










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