जेसीबी ऑपरेटर ने रचा इतिहास, जीता प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार, पढ़ें पूरी प्रेरक कहानी

जीवन के विशाल अनुभवों के बिना महान पुस्तकों की रचना नहीं होती और यह बात केरल के एक जेसीबी ऑपरेटर पर भी लागू होती है जिसने जीवन की कड़वी हकीकत को पीछे छोड़कर एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार अपने नाम कर लिया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 23 July 2023, 7:09 PM IST
google-preferred

कन्नूर:  जीवन के विशाल अनुभवों के बिना महान पुस्तकों की रचना नहीं होती और यह बात केरल के एक जेसीबी ऑपरेटर पर भी लागू होती है जिसने जीवन की कड़वी हकीकत को पीछे छोड़कर एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार अपने नाम कर लिया।

हाल ही में जब केरल साहित्य अकादमी ने साहित्य के अपने प्रतिष्ठित वार्षिक पुरस्कार के विजेता की घोषणा की, तो 28 वर्षीय अखिल के संघर्ष के बीच आगे बढ़ने की कहानी पर भी रोशनी पड़ी। अखिल ने अपनी मेहनत से खुद को एक लेखक के रूप में तराशा।

रचनात्मकता की यह उल्लेखनीय कहानी दक्षिणी राज्य केरल से आयी है जिसकी सबसे अधिक साक्षरता दर को लेकर तारीफ की जाती है।

अखिल को केरल साहित्य अकादमी का 2022 का प्रतिष्ठित ‘गीता हिरण्यन एंडोमेंट’ पुरस्कार दिया गया है। 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ चुके अखिल को लघुकथाओं के संग्रह ‘नीलाचदयन’ से यह पहचान मिली है। उनकी यह पुस्तक 2020 में प्रकाशित हई थी।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार अखिल ने  कहा, ‘‘मुझे जो पहचान मिली है, उससे मैं खुशी महसूस करता हूं। यह अप्रत्याशित था।’’ उन्होंने अपनी पहली साहित्यिक कृति के प्रकाशन को लेकर अपने संघर्ष की कहानी बतायी।

वैसे तो अखिल जेसीबी ऑपरेटर के रूप में काम करके थक जाते हैं, लेकिन उसके बाद भी वह अपने विचारों को रात में लेखनीबद्ध करते हैं।

उन्हें अपने परिवार का सहारा बनने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। लेकिन साहित्य जगत के प्रति उनका अनुराग बना रहा। उनके परिवार में माता-पिता, भाई और दादी हैं।

लेकिन एक दिहाड़ी मजदूर को यह प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार मिलने की उपलब्धि के पीछे एक कटु सच्चाई छिपी है जो उभरते लेखकों के सामने आती है और वह है प्रकाशन का मौका हासिल करना।

उन्होंने कहा , ‘‘चार सालों तक मैंने अपने लेखन कार्य के प्रकाशन के लिए कई प्रकाशकों एवं पत्रिकाओं से संपर्क किया था। उनमें से कुछ प्रकाशकों को मेरी कहानियां पसंद आयीं, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि उनके लिए बाजार ढूंढ़ना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि मैं इस क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम नहीं था।’’

‘नीलाचदयन’ पहले तब प्रकाशित हुआ है जब अखिल ने फेसबुक पर एक विज्ञापन देखा। उसमें कहा गया था कि यदि लेखक 20000 रुपये दे तो वह उसकी पुस्तक का प्रकाशन करेगा।

अखिल ने कहा, ‘‘ मैंने करीब 10000 रुपये बचाकर रखे थे। दिहाड़ी मजदूरी करने वाली मेरी मां ने अतिरिक्त 10 हजार रुपये जुटाने में मेरी मदद की और हमने पहली पुस्तक के प्रकाशन के लिए पैसे दिये। यह केवल ऑनलाइन बिक्री के लिए थी।’’

चूंकि यह पुस्तक दुकानों में नहीं थी इसलिए उसने कोई ऐसा प्रभाव नहीं पैदा किया। अखिल ने बताया कि इस पुस्तक को तब एक पहचान मिली जब बिपिन चंद्रन ने फेसबुक पर उसके बारे में सकारात्मक बातें लिखीं।

अखिल ने कहा, ‘‘ बाद में लोग पुस्तक की दुकानों पर उसके बारे में पूछने लगे और प्रकाशन शुरू हो गया। अब तक आठ संस्करण प्रकाशित हुए हैं।’’

Published : 

No related posts found.