हाई कोर्ट ने किया झुग्गी गिराने के मामले में हस्तक्षेप से इनकार, जानें पूरा मामला

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को यहां प्रगति मैदान के पास झुग्गियों को गिराए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और वहां रहने वालों को परिसर खाली करने के लिए एक महीने का समय दिया। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को यहां प्रगति मैदान के पास झुग्गियों को गिराए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और वहां रहने वालों को परिसर खाली करने के लिए एक महीने का समय दिया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, इस साल की शुरुआत में जारी एक विध्वंस नोटिस के बाद निवासियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहीं न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि उक्त अधिकारी 31 मई के बाद विध्वंस की कार्रवाई कर सकते हैं और स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को लागू मानदंडों के अनुसार आश्रय गृह में वैकल्पिक आवास प्रदान किया जाएगा।

अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ताओं को लागू मानदंडों के अनुसार आश्रय गृह में जाने के लिए एक महीने का समय दिया जाता है। 31 मई के बाद प्रशासन विध्वंस की कार्रवाई कर सकता है। उक्त तिथि तक, याचिकाकर्ताओं के सभी सामान को हटा दिया जाएगा।”

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अदालत ने कहा कि भैरों मार्ग के किनारे स्थित झुग्गियां दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) द्वारा “अधिसूचित क्लस्टर” का हिस्सा नहीं थीं और इसलिए किसी भी पुनर्वास का निर्देश नहीं दिया जा सकता है।

यह भी कहा गया कि संबंधित संरचनाएं क्षेत्र में मान्यता प्राप्त झुग्गी क्लस्टर से “काफी दूरी” पर भी थीं।

अदालत ने दर्ज किया, “यह दिखाने के लिए एक स्केच भी रिकॉर्ड पर रखा गया है कि याचिकाकर्ताओं की झुग्गियां भैरों मार्ग की सड़क के किनारे हैं।” अदालत ने कहा कि, चूंकि “वे मान्यता प्राप्त झुग्गी का हिस्सा नहीं हैं”, ऐसे में वह विध्वंस या बेदखली में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है।

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याचिकाकर्ताओं ने इस साल की शुरुआत में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) द्वारा प्रगति मैदान के पीछे ‘जनता कैंप रेलवे नर्सरी’ में ‘झुग्गी क्लस्टर’ का हिस्सा होने का दावा करते हुए विध्वंस की कवायद के खिलाफ अदालत का रुख किया था, जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि यह एक अधिसूचित झुग्गी बस्ती है।

अदालत ने फरवरी में विवादित झुग्गी के विध्वंस पर रोक लगा दी थी और इस मुद्दे पर केंद्र और दिल्ली सरकार के अधिकारियों का रुख पूछा था।










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