Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र राजनीतिक संकट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, ठाकरे गुट बोला- निर्वाचित सरकारों को गिराने पर बार-बार उठेंगे सवाल

शिवसेना के उद्धव ठाकरे नीत गुट ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि जून 2022 के महाराष्ट्र राजनीतिक संकट से उत्पन्न प्रश्न महज अकादमिक नहीं है और जब-जब निर्वाचित सरकारों को गिराया जायेगा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 17 February 2023, 1:17 PM IST
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नयी दिल्ली: शिवसेना के उद्धव ठाकरे नीत गुट ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि जून 2022 के महाराष्ट्र राजनीतिक संकट से उत्पन्न प्रश्न महज अकादमिक नहीं है और जब-जब निर्वाचित सरकारों को गिराया जायेगा, ऐसे सवाल सामने आएंगे।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार शिवसेना (यूबीटी) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ के सामने तर्क दिया कि सरकारों को गिराने के लिए विधायक दल के भीतर फेरबदल संविधान की 10अनुसूची के विपरीत है।

पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल थे। पीठ के समक्ष जिरह करते हुए सिब्बल ने कहा, ‘‘यह आज का मामला नहीं है। यह कल का भी सवाल नहीं है। यह मुद्दा बार-बार उठेगा, जब चुनी हुई सरकारें गिराई जाएंगी। दुनिया का कोई लोकतंत्र ऐसा करने की अनुमति नहीं देता। इसलिए कृपया इसे अकादमिक सवाल न कहें।’’

शीर्ष अदालत ने मामले को बड़ी पीठ के समक्ष भेजने को लेकर फैसला सुरक्षित करते हुए कहा कि एक पहलु पर विचार किया जाएगा कि क्या वर्ष 2016 का नबाम रेबिया का फैसला ऐसे सभी मामलों पर लागू होगा।

प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की , ‘‘मुख्यमंत्री के इस्तीफे से सदन में बहुमत साबित नहीं हुआ...इसलिए मतदान की परिपाटी का पता नहीं चला...क्या नबाम रेबिया का मामला आता है?...निश्चित तौर पर दिलचस्प पहलु है...लेकिन क्या अदालत बिना तथ्यों के इस पर विचार कर सकती है।’’

सुनवाई के शुरू में शिवसेना नेतृत्व से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे गुट का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि वर्ष 2016 का नबाम रेबिया का फैसला सही कानून था और इस मामले को बड़ी पीठ को भेजने का कोई कारण नहीं है।

वर्ष 2016 में अरुणाचल प्रदेश के नबाम रेबिया के मामले पर फैसला करते हुए पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि विधानसभा अध्यक्ष विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए दी गई अर्जी पर कार्यवाही नहीं कर सकते अगर उन्हें (विधानसभा अध्यक्ष) को हटाने के लिए पहले से नोटिस विधानसभा में लंबित हो।

इस फैसले से एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बागी विधायकों को राहत मिल गई थी क्योंकि ठाकरे ने जहां बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने का आग्रह किया था तो वहीं शिंदे खेमे ने महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरी सीताराम जरीवाल को हटाने के लिए नोटिस दिया था जो सदन के समक्ष लंबित था।

जेठमलानी ने तर्क दिया कि नबाम रेबिया फैसले में सुधार के लिए पुनर्विचार करने और बड़ी पीठ को मामला भेजने की कोई जरूरत नहीं है।

शिंदे गुट की ओर से ही पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने पीठ से कहा कि शिवसेना के अधिकतर विधायकों ने महसूस किया पार्टी नेतृत्व में मूल विचारधारा, दर्शन और नीतियों के लिए बदलाव की जरूरत है।

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