जमीनी सच्चाई: क्या वाकई हर एक गरीब को मिल रहा है आवास?
देश से गरीबी हटाने और हर गरीब को आवास देने की सरकारी घोषणाओं की जमीनी हकीकत आखिर क्या है? इसी बड़े और पेचीदा सवाल का जवाब जानने के लिए पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
भिंड (लहार): 21वीं सदी में भी देश के कई गरीब एक अदद छत को तरस रहे है। यह हाल तब है जब गरीबों का सर्वांगीण विकास केंद्र और राज्य सरकारों के एजेंडे में सबसे ऊपर है। कारण भले जो भी हों लेकिन गरीबी हटाने और हर गरीब को आवास देने की सरकारी योजनाएं कई बार जमीनी हकीकत से कोसों दूर नजर आती है। मध्य प्रदेश के भिंड जिले के लहार में डाइनामाइट न्यूज़ टीम का सामना एक ऐसे ही हैरान करने वाले मामले और परिवार से हुआ।
चार सदस्यों का परिवार, दोनों मुखिया दिव्यांग
भिंड के लहार में रहने वाले जीतेन्द्र और उनकी पत्नी दोनों की दिव्यांग हैं। जीतेन्द्र के परिवार में उनको मिलाकर कुल चार सदस्य हैं, जिनमें उनके दो छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं। उनका पुश्तैनी परिवार पिछले कई सालों से लोहे पीटने का कार्य करता है लेकिन यह काम हर रोज नहीं मिलता और जिस दिन उनको ये काम नहीं मिलता, उस शाम को यह परिवार भूखे पेट सोने को विवश हो जाता है।
भीषण ठंड और दीनहीन स्थिति
डाइनामाइट न्यूज़ टीम की नजर जब भीषण ठंड में सड़क किनारे दीनहीन स्थिति में रह रहे इस परिवार और छोटे-छोटे बच्चों पर पड़ी तो हमारे पांव खुद ही रुक गये। झोपड़ी के अंदर-बाहर का अस्त-व्यस्त दृश्य और इस परिवार के दयनीय मनोभाव इनकी कहानी खुद बताने लगे।
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प्लास्टिक की पन्नियों से बनी झोपड़ी
यहां सड़क किनारे बनी एक झोपड़ी है। हैरान करने वाली बात यह है कि ये झोपड़ी भी प्लास्टिक की पन्नियों से बनी हुई हैँ। हवा के एक हल्का सा झोंका भी झोपड़ी को उड़ाने वाला प्रतीत होता है। इसी झोपड़ी में जीतेन्द्र का पूरा परिवार रहता है। झोपड़ी के अंदर धूल-मिट्टी से सने कौने और थोड़ा-बहुत सामान इस परिवार की माली स्थिति को बयां कर देती है।
एक अदद छत की मांग की नहीं हुई सुनवाई
तंगहाल झोपड़ी को देख डाइनामाइट न्यूज़ ने जब जीतेन्द्र से गरीबों के लिये सरकार की आवासी योजनाओं के लाभ के बारे में पूछा तो उनके चेहरे की भाव-भंगिमाएं अचानक बदल गई। जितेन्द्र ने बताया कि उन्होंने शासन-प्रशासन से एक छत उपलब्ध कराने के बारे में कई बार बात की। वे इसके लिए कई बार नगरपालिका भी गए लेकिन आश्वासनों के सिवा उन्हें कुछ नहीं मिला और कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। जीतेन्द्र की मांग हैँ की सरकार से उन्हें एक अदद आवास मिल जाये। लेकिन पिछले अनुभवों के आधार पर यह सपना इस परिवार के लिए महज एक दूर की कौड़ी प्रतीत होता है।
देते हैं वोट पर नहीं मिलता हक
जीतेन्द्र बताते है कि उनके पास वोटर कार्ड और आधार कार्ड भी हैँ। चुनावी मौसम में कई नेता भी इस परिवार के पास आते हैं। उनसे वोटिंग की अपील भी करते हैं और वे वोट भी डालते है। लेकिन किसी योजना का फायदा न मिलने के कारण वे महज एक ऐसे वोट बैंक का हिस्सा बन गये हैं, जिनका केवल फायदा उठाया जाता है और बदले में उनको कई लाभ नहीं मिलता।
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कई बार नहीं बुझती पेट की आग
डाइनामाइट न्यूज़ से बातचीत में जीतेन्द्र आगे कहते हैं उनका लोहा पीटना उनके परिवार का 50-60 वर्षों से पुश्तैनी काम है। इसके अलावा उन्होंने कुछ सीखा नहीं। यदि कभी लोहा पीटने का काम आता है तो उनका चौका-चूल्हा जल जाता है और खर्चा चल जाता है। कई बार वहां से गुजरते भद्र लोग भी उनको खाने-पीने का सामान दे जाते है। लेकिन जब कोई कुछ नहीं देता और काम नहीं आता को परिवार को कई बार भूखा भी सोना पड़ता है।