Govardhan Puja 2018: जब भगवान श्री कृष्ण ने चकनाचूर किया था इंद्र का अभिमान

गोवर्धन पूजा का आज विशेष महत्व है, दिवाली के एक दिन बाद मनाये जाने वाला यह त्यौहार पवित्रता का प्रतीक है। गोवर्धन पूजा को लेकर वैसे तो कई पौराणिक मान्यताएं है लेकिन जो सबसे प्रचलित है वह भगवाम श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत से जुड़ी हुई है। डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट में पढ़ें गोवर्धन पूजा का महत्व और इससे जुड़ी मान्यता

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 8 November 2018, 12:00 PM IST
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नई दिल्लीः आज गोवर्धन पूजा है यह त्यौहार दिवाली के बाद आता है। हिंदूओं का यह पवित्र त्यौहार इसलिये भी विशेष है क्योंकि इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत, गायों, ग्वालों आदि की आकृति बनाकर पूजा- अर्चना की जाती है। भक्तगण मंदिर की परिक्रमा कर छप्पन भोग का प्रसाद बांटते हैं। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। 

गोवर्धन पूजा से जुड़ी मान्यता और पौराणिक इतिहासः

1. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि एक दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का अभिमान तोड़कर बृजवासियों की रक्षा की थी तभी से ही गोवर्धन पूजा की जाती है और भगवान श्री कृष्ण की इस दिन विशेषतौर पर पूजा की जाती है।      

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गोवर्धन पूजा के लिये चढ़ाया गया प्रसाद

 

2. जब एक बार भगवान कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे। तब कृष्ण ने इंद्र की पूजा के बारे में अपनी मां से पूछा तो उनकी माता ने कृष्ण को बताया कि इंद्र देवताओं के राजा है जो वर्षा करते हैं और इससे पृथ्वी पर अन्न की पैदावार होती है और गायों को चारा मिलता है।

3. इस पर कृष्ण ने कहा कि अगर ऐसा है तो सबको गोवर्धन की पर्वत की पूजा करना चाहिये क्योंकि गायें तो इसी पर्वत पर ही चरने के लिये जाती है। इस पर सभी ब्रजवासी उनकी बात मानकर इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा- अर्चना करने लगे।       

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ब्रज में होती है विशेष पूजा- अर्चना

 

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4. जब देवराज इंद्र ने देखा कि ब्रजवासी उनकी जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं तो यह इंद्र को अच्छा नहीं लगा और वह गुस्से से आग बबूला हो गये। इंद्र ने क्रोध में आपा खो दिया और उन्होंने पृथ्वी पर प्रलय मचाने के लिये मूसलाधार बारिश कर दी। इससे चारों तरफ भीषण बारिश से  त्राहि-त्राहि मच गई और मनुष्य ही नहीं बल्कि जीव-जंतु की जान को खतरा हो गया।

5. भगवान कृष्ण ने जब इंद्र को पृथ्वी पर तबाही मचाते हुए देखा तो कृष्ण ने इसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिये गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और सभी ब्रजवासी इसी पर्वत के नीचे आ गये। इस पर इंद्र को अपनी इस करनी पर बड़ी भूल हुई और इंद्र ने बिना देर किये भगवान कृष्ण से माफी मांगी और तभी से ही सभी गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना करते हैं।

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