गोरखपुर: चौरी चौरा में लाखों की लागत से बना ऐतिहासिक शहीद स्मारक बदहाली के कगार पर, देखिये ये एक्सक्लूसिव VIDEO

डीएन ब्यूरो

सरकार की उपेक्षा के कारण चौरी चौरा में लाखों की लागत से बने शहीद स्मारक की स्थिति दयनीय होती जा रही है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट



चौरी चौरा (गोरखपुर): देश की आजादी के 75वीं वर्षगांठ के मौके पर सरकार द्वारा अमृत उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। अमृत काल में मां भारती के अमर शहीदों और महापुरुषों को नया सम्मान और पहचान दिलाने की कोशिशें हो रही है। लेकिन गोरखपुर के  चौरीचौरा में लाखों की लागत से बना शहीद स्मारक अपना सम्मान खोता जा रहा है।

शहीदों की गाथाएं से रूबरू होने के उद्देश्य से चौरी चौरा में लाखों की लागत से शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए स्मारक के पास फाउंटेन फव्वारा के अलावा दीवारों पर महापुरुषों की चित्रकारी भी कराई गई। देखरेख के अभाव में आज यह शहीद स्मारक दिनोंदिन बदहाल होता जा रहा है।

डाइनामाइट न्यूज़ टीम ने इस शहीद स्थल का दौरा किया तो कई हैरान करने वाली बातें सामने आईं। स्मारक में लगे टाइल्स टूट गये हैं और शहीदों एवं महापुरुषों के चित्र मिटते जा रहे हैं। 

शहीद स्मारक का शिलान्यास

विदित हो की 6 फरवरी 1982 को 60वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने शहीद स्मारक भवन का शिलान्यास किया था। 19 जुलाई 1993 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव एवं तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा के द्वारा शहीद स्मारक चौरीचौरा का लोकार्पण किया गया। 6 दिसंबर 1998 को शहीद स्मारक के परिसर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की स्मृति में प्रदर्शन कक्ष का शिलान्यास तत्कालीन पंचायती राज राज्यमंत्री धर्मपाल सिंह एवं सचिव पंचायती राज डॉ ओमप्रकाश द्वारा किया गया। 20 जनवरी 2019 को शहीद स्मारक के पर्यटन विकास एवं सौंदर्यकरण के कार्य का शिलान्यास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने किया। इस मौके पर कई अन्य दिग्गज नेता और गणमान्य लोग भी उपस्थित हुए थे। 

बंदरों ने ली पर्यटकों की जगह
पर्यटकों के लिए बनाए गए शहीद स्मारक पर आज पर्यटकों की संख्या घटती जा रही है और बंदरों की बढ़ती संख्या लोगों के मनोरंजन का केंद्र बनी हुई है। छोटे-छोटे बच्चे एवं आने वाले कुछ स्थानीय पर्यटक इन बंदरों के आतंक से आतंकित रहते हैं।

सहजनवा और चौरी चौरा का इतिहास
मार्च 1919 में महात्मा गांधी ने अहिंसक राज्य कान्ति का शंखनाद किया था 1920 में गोरखपुर के बाले मिया मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा था कि विदेशी कपड़ों एवं अंग्रेजी पढ़ाई का बहिष्कार किया जाए। चरखा कात कर कपड़े बनाकर पहनना शुरू किया जाए तो अंग्रेजों को देश छोड़ने में देरी नहीं लगेगी। सहजनवा और चौरीचौरा स्थित प्रमुख बाजारों में सत्याग्रह की आग तेजी से फैल गई। 

उस समय चौरी चौरा विदेशी कपड़ों का बहुत बड़ा बाजार हुआ करता था। लगातार दो माह तक सत्याग्रही विदेशी कपड़ों की दुकानों, ताड़ी और शराब की दुकानों पर धरना देते रहे और पुलिस वाले जमीदारों की मदद से सत्याग्रहियों पर जब बरसी थी धुंआधार लाठियां घोड़े की टॉपों से सत्याग्रहियों को रौंदा गया। इस पर भी सत्याग्रहियों ने साहस नहीं छोड़ा और ना आतंकित हुए। पंडित मोतीलाल नेहरू जो इस क्षेत्र के सत्याग्रह के सूत्रधार रहे। उन्होंने आदेश दिया था कि बड़े दल की बजाय सत्याग्रही छोटे-छोटे टुकड़ों में भेजे जाएं और जब एक टुकड़ा घायल हो जाए तो दूसरा सत्याग्रही का टुकड़ा आगे जाए। यह क्रम चलता रहा।

पुलिस ने सत्याग्रहियों पर बरसाईं गोलियां
 4 फरवरी 1922 को 400 स्वयंसेवकों को अलग-अलग टुकड़ों में बाटा गया। लोगों ने ब्रह्मपुर में स्थापित कांग्रेस कार्यालय से चौरीचौरा थाना के सामने पहले टुकड़े के पहुंचते ही सिपाही, गार्ड, घुड़सवार, चौकीदार उन पर टूट पड़े। स्वयंसेवकों ने खतरों की सीटी बजा दी जिसे सुनकर अन्य टुकड़े के लोग भी वहां पहुंच गए। पुलिस ने गोलियां चलाना शुरु कर दी, गोलियों की आवाज और घायलों की कराह ने एक असत्य वातावरण की सृष्टि कर दी। 

23 पुलिस कर्मियों की मौत 
उस दिन की गोलीबारी वर्षा से कई सत्याग्रही मरे और सैकड़ो घायल हुए अपने साथियों को मरता देखकर आंदोलनकारी आकर्षित हो गए। पुलिस की गोलियां खत्म होने पर वह अपने थानों में जा छिपे, किसी ने मिट्टी का तेल डालकर थाने में आग लगा दी देखते ही देखते भीतर बंद पुलिसकर्मी एवं दरोगा के साथ थाना धूं-धू कर जल उठा। 23 पुलिस कर्मी को जान से हाथ धोना पड़ा। गांधी जी ने इस धारणा से विचलित होकर सत्याग्रह आंदोलन स्थगित कर दिया।

172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई
सैकड़ों लोगों पर चौरी चौरा थाने कांड का मुकदमा चला। 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। 172 में से 151 लोगों को पंडित मदन मोहन मालवीय ने अपनी वकालत के द्वारा फांसी की सजा से बचाया। 19 व्यक्तियों को 2 जुलाई 1923 को फांसी पर लटका दिया गया।










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