करगिल शहीदों को श्रद्धांजलि के लिए विजय दिवस पर परोसा जाने वाला खाना नि:शुल्क बनाती हैं गोवा की शेफ

डीएन ब्यूरो

अपने पति के निधन के बाद गुजर बसर के लिए शेफ का काम शुरू करने वाली गोवा की सरिता चव्हाण करगिल विजय दिवस पर परोसे जाने वाले स्वादिष्ट भोजन को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शहीद वीर सपूतों को श्रद्धांजलि के तौर पर वह शेफ के रूप में अपनी सेवा नि:शुल्क देती हैं। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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द्रास (लद्दाख): अपने पति के निधन के बाद गुजर बसर के लिए शेफ का काम शुरू करने वाली गोवा की सरिता चव्हाण करगिल विजय दिवस पर परोसे जाने वाले स्वादिष्ट भोजन को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शहीद वीर सपूतों को श्रद्धांजलि के तौर पर वह शेफ के रूप में अपनी सेवा नि:शुल्क देती हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, चव्हाण ने युद्ध स्मारक पर शहीदों की याद में आयोजित वार्षिक कार्यक्रम के लिए अपनी आठ-सदस्यीय टीम के साथ गोवा से द्रास की यात्रा की। चव्हाण ने 26 जुलाई (करगिल विजय दिवस) के अवसर पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए 1000 से अधिक लोगों के लिए पेस्ट्री और पैन पिज्जा से लेकर नाश्ते में डालगोना कॉफी और मीठे पकवान के रूप में फिरनी समेत दोपहर के भोजन के लिए उत्तर भारतीय व्यंजन तैयार किये।

उन्होंने कहा कि यह यात्रा आसान नहीं रही। चव्हाण ने डाइनामाइट न्यूज़  को बताया, ‘‘मैं अपनी शादी के बाद 1980 में गोवा आई थी। मैंने पाक कला की किताबें पढ़ना शुरू कर दिया था, क्योंकि मेरे पति मुझे तब तक खाना बनाने के लिए प्रेरित करते रहते थे, जब तक कि मैं पकवान बढ़िया न बना लूं। जब मेरे पति ने 1994 में अपनी नौकरी छोड़ दी और बाद में बीमारी के कारण घर में सिमटकर रह गये, तो मुझे परिवार के गुजर बसर के लिए व्यवसाय के रूप में खाना बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा।’’

हालांकि, उन्होंने शुरू से ही खाना बनाना शुरू नहीं किया, बल्कि मडगांव, पणजी और वास्को में घर-घर जाकर रेडीमेड मसाला पेस्ट बेचा।

चव्हाण ने कहा, ‘‘कुछ साल बाद, जब मेरे पति का निधन हो गया, तो मैंने पड़ोसियों के लिए टिफिन तैयार करना शुरू कर दिया। जल्द ही, मेरे ‘टिफिन भोजन’ की लोकप्रियता बढ़ती गई और मुझे कंपनियों के कर्मचारियों के लिए पैक लंच और बाद में बड़े कार्यक्रमों में खानपान के थोक ऑर्डर मिलने लगे।’’

पेशेवर डिग्री नहीं होने के कारण शुरुआत में चव्हाण का आत्मविश्वास कमजोर था। उन्होंने कहा, ‘‘यह आसान नहीं रहा। जब भी मैं विस्तार करना चाहती थी तो मुझे हमेशा यह आशंका रहती थी कि मेरे पास कोई पेशेवर डिग्री नहीं है, ऐसे में कोई मुझे नौकरी पर क्यों रखेगा? मैं करगिल की निजी यात्रा के दौरान युद्ध स्मारक गई और तभी मेरे मन में यह विचार आया। मैं विजय दिवस पर मेहमानों के लिए खाना बनाने का मौका देने के लिए सेना के अधिकारियों के पास पहुंची।’’

चव्हाण ने कहा, ‘‘शुरुआत में, वे आश्वस्त नहीं थे। इसलिए उन्होंने मुझसे कुछ छोटे कार्यक्रमों के लिए खाना बनाने को कहा। जब मैंने सफलतापूर्वक यह काम किया, तो मुझे पिछले साल कार्यक्रम के मुख्य दिन के लिए खाना बनाने का मौका मिला और अब मैं इसे हर साल जारी रखने की योजना बना रही हूं।’’

चव्हाण को उनकी सेवाओं के लिए भुगतान की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे यह कहते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि यह उन सैनिकों के लिए बहुत बड़ा अपमान होगा, जिन्होंने युद्ध के दौरान अपने जीवन का बलिदान दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे कम से कम गोवा से करगिल तक टीम के लिए यात्रा लागत को कवर करने की पेशकश की गई थी, मैंने इसे भी मना कर दिया। यह हमारे शहीदों के लिए एक बड़ा अपमान होगा। उनके परिवार हर साल यहां आते हैं और वे भावुक हो जाते हैं। कम से कम मैं उन्हें अच्छे भोजन के साथ कुछ तो सेवा मुहैया करा सकती हूं।’’

भारतीय सेना ने 26 जुलाई 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ के सफल समापन की घोषणा की थी। तोलोलिंग और टाइगर हिल समेत करगिल के बेहद ऊंचाई वाले स्थानों पर करीब तीन महीने की जंग के बाद पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकेल दिया गया था।

युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों को द्रास, कारगिल और बटालिक सेक्टर में मौसम की प्रतिकूल स्थिति के बीच सबसे चुनौतीपूर्ण इलाकों में लड़ना पड़ा। करगिल विजय दिवस पाकिस्तान पर भारत की जीत का प्रतीक है।










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