समलैंगिक विवाह पारिवारिक व्यवस्था पर हमला है: जमीयत उलेमा-ए-हिंद
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध संबंधी याचिकाओं का विरोध करते हुए मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध संबंधी याचिकाओं का विरोध करते हुए मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
संगठन ने कहा है कि यह पारिवारिक व्यवस्था पर हमला है और सभी ‘पर्सनल लॉ’ का पूरी तरह से उल्लंघन है।
शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिकाओं में हस्तक्षेप का अनुरोध करते हुए संगठन ने हिंदू परंपराओं का भी हवाला देते हुए कहा कि हिंदुओं में विवाह का उद्देश्य केवल भौतिक सुख या संतानोत्पत्ति नहीं बल्कि आध्यात्मिक उन्नति है।
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जमीयत ने कहा कि यह हिंदुओं के सोलह ‘संस्कारों’ में से एक है। उसने कहा, ‘‘समलैंगिक विवाह पारिवारिक व्यवस्था पर एक हमला है।’’
उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के अनुरोध वाली याचिकाओं को 13 मार्च को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था और कहा था कि यह मुद्दा ‘बुनियादी महत्व’ का है।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों से संबंधित है, जिसका एक-दूसरे पर प्रभाव है।
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जमीयत ने कहा, ‘‘समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध संबंधी याचिकाओं के जरिए समलैंगिक विवाह की अवधारणा पेश की है, जिससे विवाह की मूल अवधारणा कमजोर हो सकती है।’’
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं का केंद्र ने भी उच्चतम न्यायालय के समक्ष विरोध किया है।