DN Exclusive: इलाहाबाद हाईकोर्ट में यूपी सरकार के महत्वपूर्ण मामलों की पैरवी के लिए गठित दिग्गज प्राइवेट वकीलों की सूची को 24 घंटे में किया गया निरस्त, चर्चाओं का बाजार गर्म

मनोज टिबड़ेवाल आकाश

क्या उत्तर प्रदेश सरकार के न्याय विभाग में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है? यह बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है न्याय विभाग के 24 घंटे के अंदर जारी किये गये दो-दो आदेशों से। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:

प्राइवेट वकीलों की सूची को 24 घंटे में किया गया निरस्त
प्राइवेट वकीलों की सूची को 24 घंटे में किया गया निरस्त


नई दिल्ली: 13 सितंबर को उत्तर प्रदेश सरकार के न्याय विभाग ने एक आदेश जारी किया। शासनादेश संख्या-1/387129/2023 फाइल नं-07-3099/48/2023-3 दिनांक 13.09.2023 के मुताबिक इलाहाबाद हाइकोर्ट में राज्य सरकार के महत्वपूर्ण मामलों की पैरवी के लिए 14 प्राइवेट अधिवक्ताओं के पैनल को मंजूरी दी गयी है।

पहला आदेश

इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट में पैरवी के लिए 8 नामी वकीलों के नाम शामिल किये गये हैं और लखनऊ खंडपीठ में 6 वकीलों के नामों को मंजूरी दी गयी है।

दूसरा आदेश

इस आदेश के जारी होने के बाद साथी वकील इन दिग्गज वकीलों के साथ चर्चा कर बधाई दे ही रहे थे कि अचानक 24 घंटे के भीतर एक नया आदेश 14 सितंबर की तारीख में उत्तर प्रदेश सरकार के न्याय विभाग ने जारी कर दिया। इस आदेश के अनुसार 13 तारीख के आदेश को निरस्त करने का फरमान सुना दिया गया। इस आदेश में एक दिन पहले के शासनादेश को निरस्त करने का कारण नहीं लिखा गया है।

इसके बाद से अटकलों और चर्चाओं का बाजार वकीलों के बीच शुरु हो गया।

सुनिये क्या कह रहे हैं ये वरिष्ठ अधिवक्ता 
इन दिग्गज नामचीन वकीलों में एक से डाइनामाइट न्यूज़ ने जब बात की तो उन्होंने कहा कि "पैनल में मेरा नाम शामिल करने से पहले किसी ने भी मेरी सहमति नहीं ली, अपने मन से मेरा नाम डाल दिया गया, वे खुद हैरान हैं कि पहले मेरे नाम को शामिल किया गया और बाद में निरस्त करने का आदेश जारी किया गया।" 

प्रमुख सचिव न्याय की बात
डाइनामाइट न्यूज़ ने इस बारे में जब उत्तर प्रदेश शासन के न्याय विभाग के प्रमुख सचिव प्रमोद कुमार श्रीवास्तव से इस बारे में जानकारी ली और पूछा कि क्या कारण है कि 24 घंटे में प्राइवेट वकीलों के पैनल के गठन संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया तो उन्होंने बोला कि "मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है, जिसने जारी किया है वही इस बारे में कुछ बता सकता है।" 

अब यहां सवाल यह खड़ा होता है कि क्या उत्तर प्रदेश के न्याय विभाग में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है? क्या इन दिग्गज वकीलों की सहमति के बिना अपनी मनमर्जी से पैनल तैयार कर दिया गया? 
 










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