Artificial Intelligence: कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर अभी नहीं भरोसा, खड़ी हैं ये बड़ी चुनौतियां, पढ़ें पूरी रिपोर्ट
आजकल कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) हर क्षेत्र में व्याप्त है लेकिन अब भी इस पर पूरी तरह विश्वास कायम नहीं हुआ है। इस अवरोध से पार पाने की चुनौती बनी हुई है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
बोस्टन: आजकल कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) हर क्षेत्र में व्याप्त है लेकिन अब भी इस पर पूरी तरह विश्वास कायम नहीं हुआ है। इस अवरोध से पार पाने की चुनौती बनी हुई है।
जब आप हर सुबह अपने पसंदीदा समाचार ऐप पर खबरों के शीर्षकों पर नजर डालते हैं तो क्या कभी यह सोचते हैं कि किसने यह खबर लिखी?
दिमाग में यही आता होगा कि किसी मनुष्य ने यह काम किया होगा। लेकिन मुमकिन है कि किसी अल्गोरिद्म ने खबर लिख डाली हो। एआई से आज के समय में टेक्स्ट, तस्वीर और आवाज सबकुछ तैयार किया जा सकता है जिसमें मनुष्य की थोड़ी सी सहायता चाहिए होती है।
उदाहरण के लिए नेटवर्क ‘जेनरेटिव प्री-ट्रेन्ड ट्रांसफॉर्मर 3’ (जीपीटी-3) एक गल्प या कल्पना आधारित कहानी, कविता या कोई प्रोग्रामिंग कोड तैयार कर सकता है जिनमें किसी व्यक्ति द्वारा सृजित कहानी या कविता से एक तरह से भेद नजर नहीं आता।
‘द वाशिंगटन पोस्ट’, ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ और ‘फोर्ब्स’ जैसे बड़े मीडिया संस्थानों के पास स्वचालित समाचार निर्माण की प्रणाली है जिसमें एआई-अल्गोरिद्म की मदद ली जाती है।
मशीनी प्रशिक्षण और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण में काफी आगे बढ़ने के साथ ही मनुष्य द्वारा लिखित सामग्री और जीपीटी-3 जैसे आधुनिक तटस्थ नेटवर्क द्वारा तैयार विषय-वस्तु में अंतर नजर नहीं आता और यहां तक कि कविता जैसी विधा में भी ऐसा होता है जिसे विशिष्ट रूप से मानवीय गतिविधि ही माना जाता है।
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हम रोजाना के कामकाज में एआई आधारित सूचनाओं पर जितना अधिक आश्रित होते जाएंगे, भरोसे का सवाल उतना ही अहम होता जाएगा।
हाल के अध्ययनों में इस बात का पता लगाने का प्रयास किया गया कि क्या लोग एआई से तैयार खबरों पर या एआई से किये जाने वाले चिकित्सा निदान पर भरोसा करते हैं।
पता चला कि अधिकतर लोग एआई को लेकर संशय में रहते हैं। कोई मशीन तथ्यों से भरपूर सच्ची खबर लिख सकती है, लेकिन पाठकों को अब भी उसकी सत्यता को लेकर आशंका होती है।
कोई प्रोग्राम मनुष्य की तुलना में अधिक सटीक चिकित्सा विश्लेषण दे सकता है, फिर भी रोगियों के उनके डॉक्टर (मनुष्य) की सलाह पर चलने की अधिक संभावना होती है।
निष्कर्ष यह निकला है कि यदि एआई किसी व्यक्ति विशेष की तुलना में कोई गलती करता है तो लोगों के उस पर भरोसा नहीं करने की संभावना है। जब कोई संवाददाता गलती करता है तो श्रोता को यह नहीं लगता कि सारे संवाददाता अप्रामाणिक हो सकते हैं।
जब एआई से कोई त्रुटि होती है तो इस बात की महती संभावना है कि हम पूरी अवधारणा पर अविश्वास करें। मनुष्यों को ऐसा करने के लिए माफ किया जा सकता है, मशीनों को नहीं।
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एआई सामग्री को आम तौर पर चिह्नित नहीं किया जाता है। किसी समाचार संस्थान के लिए यह इंगित करना दुर्लभ ही है कि खबर को किसी अल्गोरिद्म द्वारा तैयार किया गया है।
लेकिन एआई-जनित सामग्री से पूर्वाग्रह बढ़ सकता है या दुरुपयोग हो सकता है, और नैतिकतावादियों और नीति निर्माताओं ने संस्थानों को पारदर्शी तरीके से इसके उपयोग का खुलासा करने की वकालत की है। यदि जानकारी का खुलासा करने संबंधी अनिवार्यता लागू की जाती है तो भविष्य में सुर्खियों के नीचे बायलाइन में संवाददाता के नाम की जगह एआई लिखा देखा जा सकता है।
मीडिया संस्थानों के सामने आज के अत्यंत प्रतिस्पर्धी डिजिटल बाजार में पाठकों का ध्यान खींचने की चुनौती के साथ ही उनका विश्वास अर्जित करने की चुनौती भी है।
एआई एक टूल या सॉफ्टवेयर है जिस पर निश्चित रूप से निगरानी और विनियमन की जरूरत है, लेकिन इसमें काफी कुछ अच्छा करने की भी क्षमता है।
एआई, उदाहरण के लिए त्वचा के कैंसर के जोखिम का पता लगाने के लिए एक ऐप बनाकर इस काम को आसान बना सकता है। जो लोग त्वचा रोग विशेषज्ञों का शुल्क दे पाने में असमर्थ हैं या जिन्हें इस तरह की सुविधा नहीं मिल पा रही वे इस माध्यम से जांच कर सकते हैं।