रसोई और घर से दूर वादियों में ‘खुशी का एक दिन’

डीएन ब्यूरो

उत्तराखंड के दूर-दराज के गांवों की सैकड़ों महिलाएं अपने रोजाना के कार्यों को घर के पुरुषों पर छोड़कर अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी से एक दिन निकालकर वादियों की खूबसूरती का आनंद उठा रही हैं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

खुशी का एक दिन
खुशी का एक दिन


क्यारी: उत्तराखंड के दूर-दराज के गांवों की सैकड़ों महिलाएं अपने रोजाना के कार्यों को घर के पुरुषों पर छोड़कर अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी से एक दिन निकालकर वादियों की खूबसूरती का आनंद उठा रही हैं।

इन महिलाओं में कई ऐसी माताएं या फिर बहुएं शामिल हैं, जो घर,बच्चों की देखभाल करने के साथ मवेशियों की देखरेख करती हैं और इस एक दिन के लिए वह सब कुछ भूलकर पहाड़ी गानों पर थिरकना और झूमना चाहती हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार 'खुशी का एक दिन' शीर्षक वाला यह कार्यक्रम उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के 25 स्थानों और पांच जिलों में पांच महीनों तक आयोजित जा रहा है, जो अगले साल फरवरी में समाप्त होगा।

'खुशी का एक दिन' कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने वाले गैर लाभकारी संगठन ‘उद्यम’ की अंजलि नबियाल ने कहा, ''हम एक गांव में बैठकर महिलाओं के एक समूह से बात कर रहे थे और हमने उनसे पूछा कि उनके लिए खुशी का मतलब क्या है? इस पर उनका जवाब बेहद सीधा-सादा था- हम खेल खेलना चाहती हैं, बाहर घूमना चाहती हैं।''

उन्होंने 'पीटीआई-भाषा' को बताया, ''इस कारण से यह कार्यक्रम तैयार किया गया। इस बात को ध्यान में रखा गया कि एक दिन के लिए हम सभी खुशियों को एक ही जगह लाएंगे, जिसमें खेल खेलने से लेकर खाने तक फिल्में देखने, खूबसूरत दिखने और खुद की देखभाल करने जैसी चीजें समाहित होंगी।'' उन्होंने कहा कि कुछ इस तरह से कार्यक्रम की शुरुआत हुई।

कॉर्बेट नेशनल पार्क के समीप क्यारी गांव में सर्दियों की एक खिलखिलाती सुबह में आस-पास के इलाकों की करीब तीन सौ महिलाएं अपने इस खास दिन के लिए एकत्रित हुईं। यह कार्यक्रम सुबह करीब 10 बजे शुरू हुआ और सूर्यास्त तक जारी रही।

इनमें से बहुत सी महिलाएं अपनी जिंदगी में पहली बार ऐसे पलों का आनंद उठा रही थीं- चूल्हा चौका छोड़कर, पुरूषों के बिना घर से बाहर, मंच पर नृत्य करती हुईं- वे अपने लिए खुशियों के नए मायने खोज रही थीं।

इस आयोजन के लिए गांव के एक स्कूल में रंग बिरंगें टैंट लगाए गए थे और ये महिलाएं खूबसूरत परिधान पहनकर इसमें शामिल होने आयी थीं-क्योंकि ये उनकी जिंदगी का एक खास दिन जो था।

इसमें भाग लेने वाली सास .बहू की जोड़ी को विशेष रूप से साड़ी उपहार में दी गई । दिल खोलकर संगीत की धुनों पर धमाल मचाने वाली 30 वर्षीय कविता मेहरा के लिए उनकी सास कमला देवी ने तालियां बजाई ।

कमला देवी ने कहा,‘‘ वो तो शादी ब्याह तक में नहीं नाचती। मैंने उसे ऐसे खुलकर नाचते पहली बार देखा। सच में! मुझे कितनी खुशी हुई, मैं बता नहीं सकती!’’










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