हिंदी
थाईलैंड की विश्व प्रसिद्ध मसाज तकनीक, जिसे ‘नुआद थाई’ कहा जाता है, अब केवल एक स्वास्थ्य पद्धति नहीं बल्कि यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त सांस्कृतिक विरासत बन चुकी है। इस मसाज की शुरुआत 2500 साल पहले भगवान बुद्ध के निजी चिकित्सक डॉ. शिवागो द्वारा हुई थी। आज यह तकनीक न केवल थाईलैंड बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो चुकी है।
थाईलैंड में स्पा करने वाली लड़कियां
New Delhi: थाईलैंड की पहचान अब केवल उसके खूबसूरत समुद्र तटों और भव्य मंदिरों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि एक और अद्भुत परंपरा थाई मसाज ने भी इस देश को वैश्विक पहचान दिलाई है। ‘नुआद थाई’ के नाम से मशहूर यह मसाज पद्धति न केवल शारीरिक विश्राम देती है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन भी प्रदान करती है। इस पारंपरिक मसाज की जड़ें करीब 2500 साल पुरानी हैं और इसका जन्म हुआ था भारत के आयुर्वेद, योग और बौद्ध ध्यान पद्धतियों के मेल से। इस थाई मसाज को विकसित किया भगवान बुद्ध के निजी चिकित्सक डॉ. शिवागो कुमारभच्छा ने, जिन्हें थाईलैंड में श्रद्धापूर्वक डॉ. शिवागो कोमारपज कहा जाता है।
बुद्ध के समकालीन थे डॉ. शिवागो
डॉ. शिवागो का संबंध प्राचीन भारत के मगध राज्य से था, जहां वे राजा बिंबिसार और अजातशत्रु के दरबार में मुख्य चिकित्सक के रूप में कार्यरत थे। आयुर्वेद में गहरी पकड़ रखने वाले शिवागो न केवल एक कुशल चिकित्सक थे, बल्कि भगवान बुद्ध के निकटतम मित्रों में से एक भी थे। माना जाता है कि उन्होंने ही योग, आयुर्वेद, एक्यूप्रेशर और ध्यान को मिलाकर थाई मसाज की एक नई पद्धति विकसित की। उनकी यह चिकित्सा पद्धति धीरे-धीरे थाईलैंड पहुंची और बौद्ध भिक्षुओं ने इसे अपनाकर इसे मंदिरों में सिखाना शुरू कर दिया। आज भी बैंकॉक स्थित प्रसिद्ध वाट फो मंदिर में इस मसाज की तकनीकें पत्थरों पर उकेरी गई हैं ताकि पीढ़ियों तक इसका ज्ञान बना रहे।
किसानों की थकान दूर करने से शुरू हुई परंपरा
थाईलैंड में यह मसाज पहले किसानों की शारीरिक थकावट को दूर करने के लिए उपयोग में लाई जाती थी। दिन भर खेतों में काम करने के बाद मांसपेशियों की अकड़न को दूर करने के लिए थाई मसाज का सहारा लिया जाता था। इसलिए हर किसान अपने बच्चों को यह मसाज देना सिखाता था और यह परंपरा मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती गई।
थाई मसाज का अनूठा तरीका
थाई मसाज एक ऐसा अनुभव है, जहां न केवल थेरेपिस्ट के हाथ बल्कि पैर, कोहनी और घुटनों का भी उपयोग किया जाता है। यह मसाज फर्श पर बिछे एक मैट पर किया जाता है, और इसमें न तो किसी तेल की जरूरत होती है और न ही कपड़े उतारने की। यह पूरी तरह से कपड़े पहने हुए किया जाने वाला थेरेपी है, जिससे व्यक्ति का शरीर और मन दोनों ही पूरी तरह से रिलैक्स हो जाते हैं। थाई मसाज में कोई दर्द नहीं होता। इसकी तकनीक में मांसपेशियों को खींचने, संपीड़न (कंप्रेशन) और विशेष बिंदुओं पर दबाव (प्वाइंट प्रेशर) देने का प्रयोग किया जाता है, जिससे शरीर की आंतरिक ऊर्जा प्रवाह बेहतर होती है।
विकास और विविधता की यात्रा
थाईलैंड के अलग-अलग क्षेत्रों में इस मसाज की भिन्न-भिन्न तकनीकें देखने को मिलती हैं। इन क्षेत्रों के लोग जब एक-दूसरे से मिलते हैं, तो वे अपनी-अपनी तकनीकें साझा करते हैं। इसके अलावा भारत, चीन, म्यांमार और तिब्बत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का भी प्रभाव थाई मसाज पर पड़ा है। इस कारण यह एक समृद्ध, बहुआयामी और बहु-सांस्कृतिक थैरेपी पद्धति बन चुकी है।
दुनिया भर में फैली लोकप्रियता
साल 1906 में बैंकॉक में थाई मसाज का पहला संस्थागत स्कूल खोला गया, जिसमें दुनियाभर से थेरेपिस्टों को यह तकनीक सिखाई जाने लगी। इसके बाद से इसकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ। बैंकॉक, पटाया जैसे शहरों में थाई मसाज पार्लर एक बड़ा आकर्षण बन चुके हैं, जहां हर साल लाखों पर्यटक इस थेरेपी का आनंद लेते हैं। भारत, अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में अब थाई मसाज सेंटर खुल चुके हैं। खास बात यह है कि पश्चिमी देशों में भी यह मसाज काफी प्रचलित हो चुकी है और इसे योग और मानसिक शांति की अन्य विधियों के साथ जोड़ा जा रहा है।
यूनेस्को की मान्यता
साल 2019 में यूनेस्को ने 'नुआद थाई' यानी थाई मसाज को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage of Humanity) की सूची में शामिल किया। यह मान्यता दर्शाती है कि यह तकनीक न केवल एक चिकित्सा पद्धति है, बल्कि संस्कृति, परंपरा और ज्ञान का संगम भी है, जिसे अगली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए।
No related posts found.