

भारत और पाकिस्तान का विभाजन 1947 में हुआ, जिससे न केवल भौतिक बंटवारा हुआ। बल्कि संपत्तियों, कर्मचारियों और वित्तीय संसाधनों के बंटवारे पर भी विवाद उत्पन्न हुआ। अंग्रेजों ने भारत के बंटवारे के लिए लॉर्ड रेडक्लिफ को जिम्मेदार ठहराया था। 1947 में उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन का फैसला किया, जिसे केवल नक्शे पर खींची गई लकीर से समझा जा सकता था।
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New Delhi: भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन की प्रक्रिया 1947 में हुई, जो न केवल भौतिक रूप से देश को दो हिस्सों में बांटने वाली थी, बल्कि यह विभाजन एक गहरी राजनीति, आर्थिक और सांस्कृतिक बंटवारे की गवाह भी बना। 15 अगस्त 1947 को भारतीय उपमहाद्वीप ने अंग्रेजी साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन इसके साथ ही बंटवारे का संकट भी पैदा हुआ। 76 साल पहले हुआ यह बंटवारा नक्शे पर एक लकीर खींचने जितना सरल नहीं था, बल्कि इसके साथ जटिलताओं, संघर्षों और आंतरिक विवादों का ढेर था, जिसका असर आज भी दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ रहा है।
केवल नक्शे की लकीर?
अंग्रेजों ने भारत के बंटवारे के लिए लॉर्ड रेडक्लिफ को जिम्मेदार ठहराया था। 1947 में उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन का फैसला किया, जिसे केवल नक्शे पर खींची गई लकीर से समझा जा सकता था। भौगोलिक बंटवारे के बाद सबसे बड़ा सवाल यह था कि दोनों देशों के बीच संपत्तियों और संसाधनों का कैसे बंटवारा किया जाएगा।
सिक्का उछाल कर घोड़ागाड़ी का मालिकाना
विभाजन के बाद एक अनूठे तरीके से कई संपत्तियों का बंटवारा किया गया। उदाहरण के लिए भारत के वायसराय की घोड़ागाड़ी का मालिकाना हक सिक्का उछालकर तय किया गया, जिसमें भारत जीत गया। यह घोड़ागाड़ी बाद में राष्ट्रपति भवन में भारतीय राष्ट्रपति द्वारा इस्तेमाल की जाती थी। 2014 में तीन दशकों तक सुरक्षा कारणों से बंद रहने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस घोड़ागाड़ी का सार्वजनिक समारोहों में पुनः इस्तेमाल किया।
विभाजन के लिए बनाई गई समिति
भारत और पाकिस्तान के विभाजन के लिए 12 जून 1947 को एक विभाजन परिषद का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता लॉर्ड माउंटबेटन ने की। इस परिषद में भारतीय नेताओं जैसे सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद और मुस्लिम लीग के नेताओं लियाकत अली खान और अब्दुर रब निश्तर का प्रतिनिधित्व था। विभाजन की प्रक्रिया के दौरान कई अहम सवालों का हल निकाला गया। जिसमें रक्षा, मुद्रा और सार्वजनिक वित्त समझौते शामिल थे।
पैसों का बंटवारा
विभाजन के तहत पाकिस्तान को ब्रिटिश भारत की संपत्ति और देनदारियों का 17.5 प्रतिशत हिस्सा मिला। पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक को 75 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जिसमें 20 करोड़ रुपये का कार्यशील शेष 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान को दे दिया गया था। लेकिन विभाजन के बाद पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के कारण भारत ने शेष 75 करोड़ रुपये के भुगतान पर रोक लगा दी। गृह मंत्री सरदार पटेल ने यह स्पष्ट किया कि भुगतान कश्मीर मुद्दे पर समझौता होने तक नहीं किया जाएगा।
महात्मा गांधी का अनशन, पाकिस्तान को दिलाए पैसे
महात्मा गांधी ने भारत सरकार के इस रुख को नकारते हुए शेष राशि पाकिस्तान को देने की मांग की। गांधीजी ने इस मुद्दे पर अनशन भी किया और उनके प्रयासों के बाद 15 जनवरी 1948 को भारत सरकार ने शेष राशि का भुगतान करने का फैसला किया, इसे गांधीजी की अहिंसक नीति के तहत शांति और सद्भावना के प्रतीक के रूप में देखा गया।
विभाजन के बाद का कर्ज
विभाजन के 76 साल बाद भी भारत और पाकिस्तान के बीच आर्थिक विवाद बने हुए हैं। भारत हर साल आर्थिक सर्वेक्षण में पाकिस्तान से बकाया राशि के रूप में 300 करोड़ रुपये के विभाजन पूर्व कर्ज का दावा करता है। दूसरी ओर पाकिस्तान ने 2014 में भारत पर 560 करोड़ रुपये का बकाया होने का दावा किया है, जो पाकिस्तान के रिजर्व बैंक को सौंपे गए कुछ संपत्तियों से संबंधित है।
संपत्ति का बंटवारा थोड़ा हास्यास्पद था
संपत्तियों का बंटवारा बहुत ही अजीबोगरीब तरीके से हुआ था। उदाहरण के लिए कई कार्यालय फर्नीचर, लाइट बल्ब और यहां तक कि पुलिस बैंड के उपकरण भी 80-20 के अनुपात में बांटे गए। यह वाकई एक हास्यास्पद प्रक्रिया थी। जिसमें पुलिस अधीक्षक ने एक मुस्लिम और एक हिंदू डिप्टी के बीच एक बांसुरी और ढोल का बंटवारा किया था। यह उन संघर्षों को भी दिखाता है जो विभाजन के दौरान उत्पन्न हुए थे।
कर्मचारियों का बंटवारा
विभाजन के समय सरकारी कर्मचारियों के बंटवारे का काम बेहद कठिन था। लगभग 70 दिनों में विभाजन परिषद ने कर्मचारियों को दोनों देशों में बंटने का फैसला किया। लेकिन इस प्रक्रिया में कई समस्याएं उत्पन्न हुई, जैसे कि पश्चिम बंगाल सरकार ने पूर्वी बंगाल से कर्मचारियों को अपनी तरफ खींच लिया, जबकि पाकिस्तान में कर्मचारियों की भारी कमी हो गई।
सेना का बंटवारा
सेना का बंटवारा भी अत्यधिक विवादित था। भारतीय और पाकिस्तानी सेना के बीच कुल 4,00,000 सशस्त्र बलों का विभाजन हुआ। बाद में दोनों देशों के सैन्य बलों ने तेजी से अपने आकार में वृद्धि की और दोनों देश अब परमाणु शक्ति संपन्न हैं। पाकिस्तान ने 2022 में 51 अरब डॉलर के रक्षा आवंटन की घोषणा की, जबकि भारत ने उसी वर्ष 81 अरब डॉलर का रक्षा बजट तय किया।