

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब पूरे भारत में जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई गई, तो केरल में यह 14 सितंबर को क्यों मनाई जाएगी? थरूर ने त्योहारों की तिथियों को एकरूप करने की जरूरत पर भी जोर दिया। साथ ही उन्होंने श्रीकृष्ण के जीवन से नेतृत्व और राजनीति के सबक लेने की भी बात कही।
केरल में जन्माष्टमी को लेकर शशि थरूर का सवाल
New Delhi: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने रविवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट करते हुए कहा कि पूरे भारत में जन्माष्टमी 16 अगस्त, 2025 को मनाई गई, लेकिन केरल में यह त्योहार 14 सितंबर, 2025 को मनाया जाएगा। उन्होंने तंज भरे अंदाज में पूछा "क्या भगवान दो बार अलग-अलग तारीखों पर जन्म ले सकते हैं?"
क्या सभी को एकसाथ नहीं मनाना चाहिए धार्मिक पर्व?
थरूर ने सवाल उठाते हुए लिखा कि धार्मिक त्योहारों की तिथियों को तर्कसंगत और एकरूप बनाने की क्या कोई आवश्यकता नहीं है? उन्होंने कहा कि "आखिरकार केरलवासी अलग-अलग क्रिसमस तो नहीं मनाते। तो फिर जन्माष्टमी जैसे पर्व को लेकर दोहरी तिथि क्यों?" यह बयान न केवल सवाल खड़ा करता है, बल्कि एक वैचारिक बहस की भी शुरुआत करता है कि क्या धार्मिक परंपराओं को स्थानीय पंचांग के अनुसार अलग-अलग मनाया जाना उचित है, या एक समान राष्ट्रीय तिथि निर्धारित की जानी चाहिए।
मलयालम कैलेंडर के अनुसार 14 सितंबर को है जन्माष्टमी
केरल में मलयालम कैलेंडर के अनुसार त्योहारों की तिथि तय होती है। इसी कारण राज्य में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त की बजाय 14 सितंबर, 2025 (रविवार) को मनाई जाएगी। यह स्थिति हर साल देखने को मिलती है, जब देश के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक पर्व अलग-अलग तिथियों पर मनाए जाते हैं।
राजनीति में श्रीकृष्ण की भूमिका पर बोले थरूर
केवल तिथि को लेकर सवाल उठाने तक ही थरूर नहीं रुके। उन्होंने अपने तिरुवनंतपुरम कार्यक्रम में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और उनके नेतृत्व गुणों पर भी चर्चा की। अपनी बात हिंदी में रखते हुए, थरूर ने भारतीय नेताओं को सुझाव दिया कि वे भगवद्गीता, महाभारत और भागवत पुराण से श्रीकृष्ण के जीवन और शिक्षा को पढ़ें और समझें।
श्रीकृष्ण से सीखें धर्म और नेतृत्व के मूल सिद्धांत
थरूर ने कहा कि “श्रीकृष्ण का जीवन धर्म के लिए संघर्ष का प्रतीक है। वे ऐसे कार्य करते हैं जो कभी-कभी परंपरागत या नैतिक दृष्टिकोण से अस्पष्ट हो सकते हैं, लेकिन उनका अंतिम लक्ष्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश होता है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि श्रीकृष्ण राजनीति, कूटनीति और नेतृत्व में अद्वितीय हैं, और आज के नेताओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
क्या राहुल गांधी पर था थरूर का इशारा?
थरूर की यह टिप्पणी राजनीतिक हलकों में राहुल गांधी को लेकर भी देखी जा रही है। भले ही उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन "नेतृत्व की दिशा", "धर्म का मार्ग" और "दुष्टों को दंडित करने" जैसे संकेतों को राजनीतिक संदर्भ में देखा जा रहा है। यह कांग्रेस के भीतर नीतिगत दिशा और नेतृत्व पर चल रही चर्चा से भी जुड़ा हो सकता है।