‘क्या जानबूझकर कमजोर की गई जांच?’, मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी आरोपी को बरी करने के बाद ओवैसी का बड़ा बयान

मालेगांव ब्लास्ट केस में 17 साल बाद आए फैसले से देश में बहस छिड़ गई है। सभी आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा– सबूत नहीं। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और जांच एजेंसियों व सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए। क्या होगा अब अगला कदम?

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 31 July 2025, 8:56 PM IST
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Mumbai/New Delhi: मालेगांव 2008 ब्लास्ट केस, जिसमें छह लोगों की जान गई थी और करीब 100 लोग घायल हुए थे, उसमें मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने गुरुवार को सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस और विश्वसनीय सबूत नहीं पेश किया जा सका। फैसले के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है और अब AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।

राज्य सरकारों की मंशा पर सवाल

ओवैसी ने फैसले को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा, “छह नमाजियों की जान गई, सौ घायल हुए – उनका गुनाह सिर्फ ये था कि वो मुस्लिम थे। अब सबूतों के अभाव में सभी आरोपी बरी कर दिए गए। क्या मोदी और फडणवीस सरकारें फैसले के खिलाफ अपील करेंगी?” ओवैसी ने यह भी पूछा कि क्या महाराष्ट्र की धर्मनिरपेक्ष पार्टियां, जो अक्सर मानवाधिकार की बात करती हैं, इस मामले में न्याय और जवाबदेही की मांग करेंगी?

एनआईए और राजनीतिक संरक्षण का आरोप

ओवैसी ने यह भी आरोप लगाया कि 2016 में तत्कालीन सरकारी वकील रोहिणी सालियन ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि एनआईए ने उनसे आरोपियों के प्रति नरमी बरतने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि 2017 में एनआईए ने भाजपा सांसद और आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बरी कराने की कोशिश की थी। ओवैसी ने तंज कसते हुए कहा, “आज वे बीजेपी सांसद हैं। क्या यही न्याय है?”

हेमंत करकरे और जांच की साख पर सवाल

ओवैसी ने इस केस की जांच शुरू करने वाले वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे का नाम भी लिया। उन्होंने कहा कि करकरे ने इस मामले में साजिश का खुलासा किया था लेकिन 26/11 के मुंबई हमलों में शहीद हो गए। अब ओवैसी का सवाल है कि क्या एनआईए और एटीएस, जिनकी जांच को कोर्ट ने कमजोर बताया है, कभी जवाबदेह ठहराई जाएंगी?

कोर्ट का फैसला और उसका असर

कोर्ट ने सभी सात आरोपियों, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और प्रज्ञा सिंह ठाकुर शामिल हैं, को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता, और अभियोजन पक्ष कोई निर्णायक सबूत पेश नहीं कर सका। इस फैसले के बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं। जबकि आरोपी पक्ष इसे न्याय की जीत बता रहा है, वहीं आलोचक इसे राजनीतिक हस्तक्षेप और जांच एजेंसियों की नाकामी का नतीजा बता रहे हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सरकारें ऊपरी अदालत में अपील करेंगी, या मामला यहीं शांत हो जाएगा।

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