

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 इस बार 16 अगस्त को मनाई जाएगी। इस शुभ अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत 64 दिव्य कलाओं को याद किया जाता है, जो उन्होंने उज्जैन के गुरु संदीपनि के आश्रम में केवल 64 दिनों में सीखीं थीं। ये कलाएं नृत्य, संगीत, चित्रकला, मंत्र, वास्तु, भाषा, नीति और रहस्यवाद जैसे विषयों को समाहित करती हैं। जानिए कैसे ये कलाएं आज भी जीवन को संतुलित और कलात्मक बनाने की प्रेरणा देती हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की 64 कलाएं जो जीवन को देती हैं पूर्णता की सीख
New Delhi: इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त 2025 को देशभर में आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में झूला उत्सव, मटकी फोड़ प्रतियोगिता और रासलीला जैसे आयोजन होते हैं। इस दिन भक्तगण उपवास रखते हैं और रात 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म का उत्सव मनाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण न केवल एक दिव्य अवतार थे, बल्कि वे विद्या, कला, नीति, संगीत और दर्शन के भी अद्वितीय ज्ञाता थे। धर्मग्रंथों के अनुसार, श्रीकृष्ण 64 प्रमुख कलाओं में निपुण थे। इन सभी कलाओं को उन्होंने उज्जैन स्थित गुरु संदीपनि के आश्रम में केवल 64 दिनों में सीख लिया था। यह आश्चर्यजनक उपलब्धि आज भी विश्व की सबसे तेज और पूर्ण शिक्षा के रूप में मानी जाती है।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
गुरुकुल में श्रीकृष्ण के साथ उनके भाई बलराम और मित्र सुदामा ने भी शिक्षा प्राप्त की थी। मान्यता है कि यह गुरुकुल विश्व का सबसे प्राचीन शिक्षास्थल था। श्रीमद्भागवतपुराण के दशम स्कंद में वर्णित इन 64 कलाओं को जानना आज भी हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
इनमें प्रमुख हैं- नृत्य, गायन, वाद्य यंत्र बजाना, नाटक रचना, जादू विद्या (इंद्रजाल), इत्र बनाना, फूलों से श्रृंगार, तोता-मैना की भाषा बोलना, मंत्रविद्या, शकुन-अपशकुन की पहचान, भवन निर्माण, खेल-कूद, अलंकरण, चित्रकला, भाषा ज्ञान, मूल्यवान रत्नों की परख, कूटनीति, छंद रचना, पहनावे की कलाएं, मनोविज्ञान आधारित कौशल, दन्त-कला, छल से काम निकालने की विधि, आदि।
ये कलाएं केवल शारीरिक या बाहरी कौशल नहीं थीं, बल्कि उनमें से कई आध्यात्मिक, बौद्धिक और भावनात्मक विकास से भी जुड़ी थीं। उदाहरण के लिए, पहेलियों को सुलझाना, किसी मन की बात जान लेना, किसी पद में छूटे हुए शब्दों को जोड़ना- ये सब मानसिक सजगता के प्रतीक हैं।
कुछ कलाएं जैसे- शय्या-रचना, मणियों की फर्श बनाना, फूलों की सेज बनाना, भोजन बनाने की कलाएं, द्रव्यों को पहचानना- जीवन की सौंदर्यता, सुरुचि और संस्कृति को बढ़ावा देती थीं।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
यहां तक कि इंद्रजाल, उच्चाटन, वशीकरण, यंत्र-मंत्र, कठपुतली नचाना, कृत्रिम वेश धारण करना, जैसी रहस्यमयी कलाएं भी श्रीकृष्ण को आती थीं, जो उनकी रणनीतिक और लीलामयी प्रकृति को दर्शाती हैं।
इन कलाओं का अध्ययन आज भी भारतीय सांस्कृतिक अध्ययन, पारंपरिक शिल्प, योग, नाट्यशास्त्र और संगीतशास्त्र में किया जाता है। इन्हीं कलाओं की वजह से श्रीकृष्ण को 'पूर्ण पुरुषोत्तम' कहा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, कलात्मक और शैक्षिक दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध रहा है। श्रीकृष्ण की 64 कलाएं हमें जीवन को कला, संगीत, ज्ञान और नीति के संतुलन से जीने की प्रेरणा देती हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 पर इन कलाओं को याद कर हम अपनी सांस्कृतिक विरासत से पुनः जुड़ सकते हैं।
नोट- इस स्टोरी में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए डाइनामाइट न्यूज़ उत्तरदायी नहीं है।