

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और सांसद डिंपल यादव के मस्जिद दौरे के बाद लिबास पर उठे विवाद ने संसद तक सियासी हलचल मचा दी। मौलाना साजिद रशीदी की आपत्तिजनक टिप्पणी और बीजेपी के विरोध के बीच अखिलेश ने कहा– “जो लोकसभा में पहनते हैं, वही हमारी ड्रेस है।” मामला गरमाया हुआ है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव (सोर्स इंटरनेट)
Lucknow: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव एक बार फिर राजनीतिक चर्चा के केंद्र में हैं, लेकिन इस बार वजह उनकी पार्टी की नीतियाँ या चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि उनकी पत्नी और सांसद डिंपल यादव के पहनावे पर उठे सवाल हैं। मस्जिद दौरे के दौरान डिंपल यादव के लिबास को लेकर कुछ मौलानाओं ने आपत्तियाँ जताईं, जिनमें सबसे तीखी टिप्पणी मौलाना साजिद रशीदी ने की, जो बाद में एक टीवी डिबेट में सार्वजनिक हुई।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, 28 जुलाई को संसद परिसर में जब पत्रकारों ने अखिलेश यादव से इस विवाद पर सवाल किया, तो उनका जवाब सधा हुआ लेकिन तल्ख था। उन्होंने कहा, "क्या पहन कर आएं, बताओ... लोकसभा में क्या पहन कर आएं?" जब पत्रकार ने कहा कि मस्जिद में लिबास को लेकर सवाल है, तो अखिलेश ने दो टूक कहा, "जो लोकसभा में पहनकर आते हैं, वही हमारी हर जगह ड्रेस होगी।"
ये बयान उस समय आया जब मौलाना रशीदी के खिलाफ लखनऊ के विभूतिखंड थाने में एफआईआर दर्ज हो चुकी है। वहीं, बीजेपी और एनडीए सांसदों ने संसद में इस टिप्पणी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उनका आरोप है कि अखिलेश यादव ने वोट बैंक के दबाव में चुप्पी साध रखी है।
दूसरी ओर, डिंपल यादव ने इस पूरे घटनाक्रम पर संयमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है।” उन्होंने मणिपुर में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की ओर ध्यान खींचते हुए पूछा कि आखिर बीजेपी के सांसद इस मुद्दे पर मौन क्यों हैं?
इस विवाद ने विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच एक नई बहस छेड़ दी है – कि क्या किसी महिला के पहनावे को लेकर सार्वजनिक टिप्पणी करना उचित है, और क्या राजनीति में धर्म के नाम पर हस्तक्षेप बढ़ रहा है?
विशेषज्ञों का मानना है कि ये मसला अब सिर्फ पहनावे तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह धार्मिक आज़ादी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और महिला सम्मान के मुद्दे से भी जुड़ गया है।
फिलहाल, सपा ने मौलाना साजिद रशीदी की टिप्पणी को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन एफआईआर और संसद में हुए विरोध प्रदर्शन से यह साफ है कि मामला तूल पकड़ चुका है।