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Artificial Rain: दिल्ली में कृत्रिम बारिश के लिये कानपुर से क्यों उड़ा विमान, जानिये कैसे होती है क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग तकनीक से कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश की जा रही है। कानपुर से उड़ान भरने वाले विमान ने बुराड़ी और आसपास के इलाकों में रासायनिक यौगिक छोड़े हैं। मौसम ने साथ दिया तो शाम 5 से 6 बजे के बीच बारिश देखी जा सकती है।
Post Published By: Asmita Patel
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Artificial Rain: दिल्ली में कृत्रिम बारिश के लिये कानपुर से क्यों उड़ा विमान, जानिये कैसे होती है क्लाउड सीडिंग

New Delhi: दिल्ली की आबोहवा आज एक ऐतिहासिक प्रयोग की गवाह बनने जा रही है। कुछ ही देर में राजधानी के ऊपर आसमान से बूंदें बरसेंगी, लेकिन यह प्राकृतिक नहीं, बल्कि इंसान द्वारा कराई गई कृत्रिम बारिश होगी। प्रदूषण से जूझ रही दिल्ली में मौसम विभाग और IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने मिलकर क्लाउड सीडिंग की तकनीक से बारिश करवाने का फैसला किया है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य है- हवा में फैले जहरीले कणों को नीचे लाकर AQI स्तर में सुधार करना।

कानपुर से उड़ा विमान

मंगलवार सुबह कानपुर से एक विशेष विमान ने उड़ान भरी, जिसमें वैज्ञानिकों की टीम मौजूद थी। यह वही विमान है जिससे सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड जैसे यौगिकों को बादलों में छोड़ा जाएगा। शुरुआत में कानपुर में विजिबिलिटी केवल 2000 मीटर थी, जबकि उड़ान के लिए 5000 मीटर विजिबिलिटी जरूरी थी। जैसे ही मौसम साफ हुआ, विमान दिल्ली की ओर रवाना हो गया।

विमान ने दिल्ली पहुंचकर बुराड़ी, खेकरा, नॉर्थ करोल बाग, मयूर विहार, सड़कपुर और भोजपुर के ऊपर क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया पूरी की। इसके बाद विमान मेरठ एयरफील्ड पर लैंड कराया गया।

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नमी की कमी बनी बड़ी रुकावट

क्लाउड सीडिंग के लिए सबसे जरूरी शर्त है वातावरण में नमी का स्तर। वैज्ञानिकों के अनुसार कृत्रिम बारिश के लिए कम से कम 50 प्रतिशत नमी की आवश्यकता होती है। लेकिन फिलहाल दिल्ली की हवा में नमी सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत ही है। इसी कारण यह मिशन सफलता और असफलता के बीच झूल रहा है। मौसम विभाग का मानना है कि अगर बादलों में थोड़ी भी सक्रियता बनी रही तो शाम 5 से 6 बजे के बीच बारिश की संभावना है।

क्या है क्लाउड सीडिंग तकनीक?

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसमें विमान या रॉकेट से सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस जैसे रासायनिक यौगिक बादलों में छोड़े जाते हैं। ये यौगिक बादलों में मौजूद सूक्ष्म जलकणों को आकर्षित करते हैं, जिससे बादल भारी होते हैं और अंततः बारिश के रूप में पानी गिरता है। यह तकनीक दुनिया के कई देशों जैसे चीन, अमेरिका, और यूएई में पहले से सफलतापूर्वक अपनाई जा चुकी है। भारत में यह प्रयोग फिलहाल परीक्षण स्तर पर है, लेकिन अगर दिल्ली में सफलता मिलती है तो इसे अन्य प्रदूषित शहरों में भी लागू किया जा सकता है।

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प्रदूषण से राहत की उम्मीद

दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लगातार “गंभीर” श्रेणी में बना हुआ है। सरकार को उम्मीद है कि कृत्रिम बारिश के बाद हवा में मौजूद PM2.5 और PM10 कण नीचे बैठ जाएंगे, जिससे हवा थोड़ी साफ हो जाएगी। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अल्पकालिक राहत देगा, लेकिन दीर्घकालिक समाधान नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि अगर यह प्रयोग सफल रहा तो दिल्ली-एनसीआर के अन्य इलाकों, जैसे गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम में भी क्लाउड सीडिंग की जाएगी।

पिछला परीक्षण और वैज्ञानिक तैयारी

पिछले हफ्ते बुराड़ी क्षेत्र में एक परीक्षण उड़ान भरी गई थी। उस दौरान सिल्वर आयोडाइड की बहुत कम मात्रा छोड़ी गई थी, ताकि देखा जा सके कि वातावरण की स्थिति इस तकनीक के लिए उपयुक्त है या नहीं। हालांकि, नमी का स्तर उस समय भी 20 प्रतिशत से कम था, जिसके कारण बारिश नहीं हो पाई।

IIT कानपुर के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार की तैयारी ज्यादा सटीक है। उन्होंने ऐसे बादलों की पहचान की है जिनमें जलकणों की घनता अपेक्षाकृत अधिक है। यदि तापमान और हवा का दबाव सही रहा, तो शाम तक दिल्ली के कई हिस्सों में पहली कृत्रिम बारिश देखी जा सकती है।

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