नई दिल्ली: “दिल्ली के लुटियंस इलाके में एक न्यायाधीश के आवास पर जली हुई नकदी और नोट मिले – लेकिन अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। क्या हम देश में कानून का शासन का पालन कर रहे हैं? न्यायपालिका को जांच से बाहर रखना, उसे निरीक्षण से दूर रखना – यही किसी संस्था को कमजोर करने का सबसे आसान तरीका है। हर संस्था को जवाबदेह और कानूनी प्रक्रिया के अधीन होना चाहिए।” यह कहना है देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार वे नई दिल्ली में एक किताब विमोचन के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इस मामले में एफआईआर में देरी पर सवाल उठाते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि कैश कांड मामले में ‘बड़ी मछली’ कौन है। यह जानने का अधिकार देश की जनता को है।
निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति खन्ना ने जवाबदेही और पारदर्शिता के उच्च मानक स्थापित किए। जिस घटना की मैंने चर्चा की – वह सार्वजनिक हुई, और जरूरी दस्तावेज़ भी सामने लाए गए। यह बड़ी बात थी।
14 और 15 मार्च की रात
उप राष्ट्रपति ने कहा, “घटना 14 और 15 मार्च की रात की है, लेकिन देश को इसके बारे में एक हफ्ते बाद पता चला। ज़रा सोचिए – कितनी अन्य घटनाएं हो सकती हैं जिनकी हमें जानकारी ही नहीं मिलती? हर ऐसी घटना सामान्य नागरिक और कानून में विश्वास रखने वालों के मन को चोट पहुंचाती है। अगर हम लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं, तो हमें इस मामले में सच्चाई को सामने लाना ही होगा।”
अब 1991 के ‘के. वीरस्वामी निर्णय’ पर अब पुनर्विचार करने का समय आ गया है। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ने बहुत कम समय में ऐसा भरोसा जगाया है जिससे आम जनता को राहत महसूस हो रही है।
देश की जनता इस पर सच जानना चाहती है – पैसों का स्रोत क्या था? उद्देश्य क्या था? क्या इससे न्यायपालिका प्रभावित हुई? बड़े मगरमच्छ कौन हैं?”
यह मामला अब तक FIR से क्यों दूर है? दो महीने बीत चुके हैं – जनता जवाब चाहती है। यह एक परीक्षण मामला है, जिससे तय होगा कि हमारी न्यायिक प्रणाली कितनी पारदर्शी और जवाबदेह है।

