

पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में प्रकृति का कहर इस कदर टूटा है कि पूरा तंत्र हिल गया है। मूसलाधार बारिश और अचानक आई बाढ़ ने न सिर्फ दर्जनों ज़िंदगियों को निगल लिया है, बल्कि इलाके की संरचनात्मक रीढ़ भी तोड़ दी है। 154 से अधिक लोगों की मौत और सैकड़ों लापता होने की खबरों के बीच, हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।
बारिश ने बरपाया कहर (फोटो सोर्स गूगल)
New Delhi: पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में प्रकृति का कहर इस कदर टूटा है कि पूरा तंत्र हिल गया है। मूसलाधार बारिश और अचानक आई बाढ़ ने न सिर्फ दर्जनों ज़िंदगियों को निगल लिया है, बल्कि इलाके की संरचनात्मक रीढ़ भी तोड़ दी है। 154 से अधिक लोगों की मौत और सैकड़ों लापता होने की खबरों के बीच, हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।
सबसे ज्यादा तबाही खैबर पख्तूनख्वा में देखने को मिली है, जहां बादल फटने, तेज बहाव और भूस्खलन जैसी घटनाओं ने जिलों को तहस-नहस कर दिया। बुनेर जिले में अकेले 75 लोगों की मौत, जबकि मनसेहरा, बाजौर, बटाग्राम, स्वात, शांगला, और लोअर दीर जैसे इलाकों से भी लगातार मृतकों और घायलों की संख्या बढ़ती जा रही है।
हालात की गंभीरता को देखते हुए पाकिस्तानी सेना, आपदा प्रबंधन बल (PDMA) और स्थानीय प्रशासन ने राहत व बचाव कार्य तेज कर दिए हैं। बाजौर जिले के DEO अमजद खान के नेतृत्व में ऑपरेशन चलाया जा रहा है, जिसमें कई लोगों को मलबे और जलमग्न इलाकों से बाहर निकाला गया है।
PoK में स्थिति और भी भयावह हो चुकी है। गिलगित-बाल्टिस्तान के घीजर जिले में बाढ़ ने आठ लोगों की जान ली और दर्जनों घर बहा दिए। नीलम और झेलम घाटियों में पुल टूट गए, सड़कें कट गईं, और गांवों का संपर्क पूरी तरह से टूट गया है। रत्ती गली झील के पास 600 से अधिक पर्यटक फंसे हुए हैं, जिन्हें संपर्क मार्ग टूटने के कारण मौके पर ही रुकने की सलाह दी गई है।
इस आपदा ने पाकिस्तान की तैयारियों पर सवाल उठा दिए हैं। हर साल मानसून के दौरान होने वाली बाढ़, खराब इंफ्रास्ट्रक्चर और अव्यवस्थित बचाव व्यवस्था को उजागर करती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मुताबिक, मानसून की शुरुआत से अब तक 325 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें 142 बच्चे शामिल हैं।
अभी भी हालात काबू में नहीं हैं। मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में और बारिश की चेतावनी दी है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा और बढ़ सकता है।
यह आपदा सिर्फ एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि उन व्यवस्थागत कमियों की भी कहानी है जो हर साल सैकड़ों परिवारों को उजाड़ देती हैं। PoK और पाकिस्तान के कई इलाके ऐसे हैं, जहां सरकारी मौजूदगी सिर्फ घोषणाओं तक सीमित है — और जब आपदा आती है, तो सारा बोझ लोगों के हौसले और सेना की मशीनरी पर आ जाता है।
इस वक्त, पूरा इलाका संवेदनशील, डरा हुआ और असहाय है। सवाल यह है कि क्या इस त्रासदी से सबक लिया जाएगा, या फिर अगले मानसून में फिर से यही कहानी दोहराई जाएगी?