डिजिटल क्रिएटर्स का सबसे बड़ा दर्द, राघव चड्ढा ने संसद में किस कानून को बदलने की उठाई मांग?

आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने राज्यसभा में डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स की समस्याओं को उठाते हुए कॉपीराइट कानून 1956 में सुधार की मांग की। उन्होंने फेयर यूज, ट्रांसफॉर्मेटिव और इंसेडेंटल यूज को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने पर जोर दिया।

Post Published By: ईशा त्यागी
Updated : 18 December 2025, 2:03 PM IST

New Delhi: सोशल मीडिया पर रील, वीडियो और अन्य डिजिटल कंटेंट बनाकर अपनी पहचान और आमदनी बनाने वाले लाखों कंटेंट क्रिएटर्स की सबसे बड़ी समस्या आज संसद में गूंजती नजर आई। आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स के सामने आने वाली कॉपीराइट संबंधी परेशानियों को प्रमुखता से उठाया और इसे आज के समय का गंभीर मुद्दा बताया।

मनोरंजन नहीं, आजीविका का साधन

राघव चड्ढा ने सदन में कहा कि यूट्यूब, इंस्टाग्राम और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं रह गए हैं, बल्कि ये लाखों युवाओं के लिए आजीविका का स्रोत बन चुके हैं। कंटेंट क्रिएटर अपने चैनल और पेज को खड़ा करने के लिए वर्षों की मेहनत करते हैं, दिन-रात रिसर्च, शूटिंग, एडिटिंग और क्रिएटिव सोच में लगाते हैं। इसके बावजूद एक छोटी सी कॉपीराइट स्ट्राइक उनकी पूरी मेहनत पर पानी फेर सकती है।

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कुछ सेकेंड का इस्तेमाल, भारी नुकसान

चड्ढा ने बताया कि कई बार कंटेंट क्रिएटर किसी कॉपीराइट सामग्री का सिर्फ दो-तीन सेकेंड के लिए उपयोग करते हैं। यह उपयोग कमेंट्री, आलोचना, पैरोडी, एजुकेशन या न्यूज रिपोर्टिंग के उद्देश्य से होता है। कई मामलों में क्रेडिट देने के बावजूद या अनजाने में बैकग्राउंड में ऑडियो-वीडियो आने पर भी प्लेटफॉर्म कॉपीराइट स्ट्राइक लगा देते हैं। नतीजा यह होता है कि पूरा यूट्यूब चैनल या इंस्टाग्राम पेज हटा दिया जाता है और सालों की मेहनत चंद मिनटों में खत्म हो जाती है।

कानून से हो फैसला, मनमर्जी से नहीं

आप सांसद ने कहा कि किसी व्यक्ति की आजीविका का फैसला कानून के आधार पर होना चाहिए, न कि डिजिटल प्लेटफॉर्म की मनमानी पर। उन्होंने जोर दिया कि फेयर यूज को पाइरेसी नहीं माना जाना चाहिए। चड्ढा ने यह भी कहा कि भारत का कॉपीराइट एक्ट 1956 में बना था, जब न इंटरनेट था, न कंप्यूटर और न ही डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स का कोई अस्तित्व। उस समय किताबों, मैगजीन और जर्नल को ध्यान में रखकर फेयर डीलिंग की अवधारणा तय की गई थी, जो आज के डिजिटल युग में अधूरी साबित हो रही है।

डिजिटल युग के लिए नए प्रावधान जरूरी

राघव चड्ढा ने कहा कि मौजूदा कानून में डिजिटल क्रिएटर्स की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। आज जब यूट्यूब, इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर करोड़ों लोग कंटेंट बना रहे हैं, तो कानून का अपडेट होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि डिजिटल फेयर यूज की स्पष्ट परिभाषा तय की जानी चाहिए ताकि क्रिएटर्स को अनावश्यक नुकसान न उठाना पड़े।

राघव चड्ढा की तीन प्रमुख मांगें

सांसद चड्ढा ने सरकार के सामने तीन ठोस मांगें रखीं. पहली मांग यह थी कि कॉपीराइट एक्ट 1956 में संशोधन कर डिजिटल फेयर यूज को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए। इसमें ट्रांसफॉर्मेटिव यूज क्या है, कमेंट्री, सटायर, पैरोडी, एजुकेशनल और न्यूज कंटेंट की साफ परिभाषा तय की जाए। साथ ही यह भी तय किया जाए कि इंसेडेंटल यूज क्या होता है, यानी अगर बैकग्राउंड में कुछ सेकेंड के लिए ऑडियो या वीडियो चल जाए तो उसे किस श्रेणी में रखा जाए।

दूसरी मांग में उन्होंने कहा कि बैकग्राउंड में कुछ सेकेंड के लिए वीडियो या ऑडियो आने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि किसी कंटेंट क्रिएटर की सालों की मेहनत पूरी तरह खत्म कर दी जाए। इस पर संतुलित और न्यायसंगत फैसला होना चाहिए। तीसरी मांग यह रखी गई कि किसी भी कंटेंट को हटाने या चैनल को बंद करने से पहले एक स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया को फॉलो किया जाए। बिना सुने और बिना मौका दिए किसी का डिजिटल प्लेटफॉर्म खत्म कर देना अन्यायपूर्ण है।

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डिजिटल भारत में क्रिएटर्स की सुरक्षा जरूरी

राघव चड्ढा ने कहा कि डिजिटल इंडिया के दौर में कंटेंट क्रिएटर्स देश की क्रिएटिव इकॉनमी का अहम हिस्सा है। उनकी मेहनत, मौलिकता और योगदान को समझते हुए कानून में बदलाव करना समय की मांग है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेगी और डिजिटल क्रिएटर्स को कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए ठोस कदम उठाएगी।

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  • New Delhi

Published : 
  • 18 December 2025, 2:03 PM IST