

भारत जैसे धर्म प्रधान देश में ग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और आध्यात्मिक चेतना से जुड़ा एक विशेष अवसर है। विशेषकर चंद्रग्रहण, जहां पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आ जाता है, वह धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इसके साथ ही जो समय ग्रहण से पहले आता है, उसे “सूतक काल” कहा जाता है। यह काल पूजा-पाठ और शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।
ब्लड मून
New Delhi: करीब 122 साल बाद पितृपक्ष का संयोग के बाद लगा साल का आखिरी चंद्र ग्रहण खत्म हो चुका है। यह चंद्र ग्रहण भारतवर्ष में भी दिखाई दे रहा है। भारतीय समयानुसार, चंद्र ग्रहण रात 09 बजकर 58 मिनट से लेकर देर रात 01 बजकर 26 मिनट तक चला। ये ग्रहण कुंभ राशि और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में लगा है।
पूर्ण चंद्रग्रहण भारत के अधिकांश हिस्सों में देखा गया। वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दोनों ही दृष्टिकोण से यह एक दुर्लभ अवसर होगा जब चंद्रमा पूर्ण रूप से पृथ्वी की छाया में प्रवेश करेगा और "ब्लड मून" का रूप लेगा। नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरु, अहमदाबाद, जयपुर और लखनऊ जैसे बड़े शहरों में यह खगोलीय दृश्य साफ़ दिखाई दिया। इसके अलावा, यह ग्रहण एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और यूरोप के कुछ हिस्सों में भी दिखाई दिया।
भारत जैसे धर्म प्रधान देश में ग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और आध्यात्मिक चेतना से जुड़ा एक विशेष अवसर है। विशेषकर चंद्रग्रहण, जहां पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आ जाता है, वह धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इसके साथ ही जो समय ग्रहण से पहले आता है, उसे "सूतक काल" कहा जाता है। यह काल पूजा-पाठ और शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।