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विदिशा में एक भावुक कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां कुशवाह परिवार ने अपनी जिंदा बेटी का प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार कर दिया। घर से युवक के साथ चली गई बेटी की कोई सूचना न मिलने और सामाजिक दबाव के चलते परिवार ने यह कदम उठाया।
जिंदा बेटी की उठी अर्थी
Vidisha: मध्य प्रदेश के विदिशा शहर से एक बेहद भावुक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने न सिर्फ एक परिवार को बल्कि पूरे इलाके को गहरे सदमे में डाल दिया है। शहर की चुना वाली गली में रहने वाले कुशवाह परिवार ने अपनी जिंदा बेटी का प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार कर दिया। यह घटना सुनने में किसी फिल्मी कहानी जैसी लग सकती है, लेकिन विदिशा में यह एक कड़वी और दर्दनाक सच्चाई बनकर सामने आई है।
जानकारी के अनुसार, कुशवाह परिवार की 23 वर्षीय बेटी कविता कुशवाहा कुछ दिन पहले अचानक घर से चली गई थी। परिजनों के अनुसार, कविता के लापता होने के बाद परिवार ने उसकी तलाश में कोई कसर नहीं छोड़ी। रिश्तेदारों, परिचितों और आसपास के इलाकों में लगातार पूछताछ की गई, लेकिन कई दिनों तक कोई ठोस जानकारी हाथ नहीं लगी। इस अनिश्चितता और चिंता ने पूरे परिवार को मानसिक रूप से झकझोर कर रख दिया।
बाद में परिजनों को जानकारी मिली कि कविता एक युवक के साथ घर छोड़कर चली गई है। यह खबर परिवार के लिए किसी बड़े आघात से कम नहीं थी। परिवार का कहना है कि उन्होंने बेटी को बेहद प्यार और अच्छे संस्कारों के साथ पाला था और उससे भविष्य को लेकर कई उम्मीदें जुड़ी थीं।
दुख, निराशा और समाज में बदनामी की पीड़ा से टूट चुके परिजनों ने एक हैरतंगेज फैसला लिया। उन्होंने आटे से बेटी का पुतला तैयार किया, उसे अर्थी पर सजाया और परंपरागत तरीके से प्रतीकात्मक अंतिम यात्रा निकाली। इस दौरान मोहल्ले के कई लोग और रिश्तेदार मौजूद रहे। अंतिम यात्रा पूरे गमगीन माहौल में निकाली गई, जहां हर किसी की आंखें नम नजर आईं। इसके बाद, परिवार शमशान घाट पहुंचा, जहां विधि-विधान से पुतले का अंतिम संस्कार किया गया। यह दृश्य वहां मौजूद हर व्यक्ति को भावुक कर गया। लोगों के अनुसार, यह केवल एक परंपरा नहीं बल्कि उस मानसिक पीड़ा का प्रतीक था, जिससे परिवार गुजर रहा था।
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युवती के भाई राजेश कुशवाहा ने बताया कि उन्होंने अपनी बहन को बेहद स्नेह और विश्वास के साथ पाला था। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक बेटी का जाना नहीं है, बल्कि हमारे परिवार के सपनों और भरोसे का टूटना है।” वहीं पिता रामबाबू कुशवाहा ने इस फैसले को अपने जीवन का सबसे दुखद क्षण बताया। उनका कहना था कि वे इस घटना के बाद मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चुके हैं।