सावन में शिवलिंग पर चढ़ाएं ये 3 विशेष तेल, महादेव की कृपा से शनि दोष और शत्रु बाधा से मिलेगा छुटकारा, पढ़ें पूरी खबर

सावन का महीना भगवान शिव को अति प्रिय होता है। इस पवित्र माह में विशेष रूप से शिवलिंग पर कुछ खास तेल अर्पित करने से जीवन के तमाम संकट दूर हो सकते हैं। जानिए कौन से हैं ये तीन पवित्र तेल और उनके चढ़ाने से होने वाले लाभ।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 12 July 2025, 10:28 AM IST
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New Delhi: सावन का महीना भगवान शिव की आराधना का विशेष समय होता है। मान्यता है कि इस महीने शिवजी कैलाश पर्वत से उतरकर धरती पर वास करते हैं। यही कारण है कि श्रावण मास में शिवलिंग पर जलाभिषेक और विशेष पूजन का अत्यंत महत्व है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, आमतौर पर शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, भांग, धतूरा अर्पित किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन में कुछ विशेष तेलों का शिवलिंग पर अभिषेक करना भी अत्यंत फलदायी होता है?

तिल का तेल

तिल का तेल शिवलिंग पर चढ़ाना शास्त्रों में बहुत शुभ माना गया है। मान्यता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई थी और इसका संबंध शनि से भी जोड़ा जाता है। जो श्रद्धालु सावन के किसी भी सोमवार को शिवलिंग पर तिल का तेल अर्पित करते हैं। उन्हें शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। यह मानसिक तनाव, भय, रोग और शारीरिक पीड़ाओं को दूर करता है। साथ ही, यह सुख-सौभाग्य और संतान सुख प्रदान करने वाला माना गया है।

चंदन का तेल

चंदन का तेल ठंडक और शांति का प्रतीक है। इसे शिवलिंग पर अर्पित करने से मन को शांति मिलती है और ग्रहों की अशुभता दूर होती है। खासकर जो लोग कुंडली में राहु-केतु या अन्य ग्रह दोषों से पीड़ित हैं। उन्हें सावन के सोमवार को चंदन के तेल से महादेव का अभिषेक अवश्य करना चाहिए। यह करियर में आ रही रुकावटों को दूर करता है और पारिवारिक जीवन में प्रेम बढ़ाता है।

सरसों का तेल

सरसों का तेल मुख्यतः तंत्र और शत्रु बाधा से रक्षा के लिए चढ़ाया जाता है। सावन में शिवलिंग पर सरसों का तेल चढ़ाने से शत्रु शांत हो जाते हैं और विरोधी कार्यों में विफल रहते हैं। यह उपाय उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है जो कोर्ट-कचहरी, दुश्मनी या नौकरी में षड्यंत्रों का सामना कर रहे हैं। साथ ही, सरसों का तेल शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से भी राहत दिलाता है।

डिस्क्लेमर: यह लेख धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी समाज में प्रचलित धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, वैज्ञानिक प्रमाणों की पुष्टि आवश्यक नहीं है। पाठक इसे अपनी श्रद्धा और विश्वास के अनुसार अपनाएं।

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