

बदलती जीवनशैली में यह जरूरी हो गया है कि हम अपने मानसिक स्वास्थ्य को भी उतना ही महत्व दें जितना शारीरिक स्वास्थ्य को देते हैं।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स- इंटरनेट)
New Delhi: कभी-कभी हमारे साथ ऐसा होता है कि अचानक मन उदास हो जाता है, किसी से बात करने का मन नहीं करता, न कुछ अच्छा लगता है, और बस चुपचाप अकेले रहना अच्छा लगता है। लेकिन खास बात ये होती है कि न तो कोई बड़ा कारण होता है और न ही कोई बड़ा हादसा, फिर भी मूड ऑफ हो जाता है। कुछ घंटे या एक दिन बाद वही इंसान सामान्य महसूस करने लगता है जैसे कुछ हुआ ही न हो। यह स्थिति न तो असामान्य है और न ही सिर्फ आपके साथ होती है। आजकल की तेज और व्यस्त जीवनशैली में यह एक आम मानसिक स्थिति बनती जा रही है।
जानकारों के अनुसार यह स्थिति 'मानसिक थकान' या 'इमोशनल बर्नआउट' का हिस्सा हो सकती है। जब हमारे दिमाग और शरीर पर लगातार काम, तनाव, रिश्तों की उलझनें या सोशल प्रेशर का बोझ पड़ता है, तो वह खुद-ब-खुद ब्रेक मांगता है। ऐसे समय में दिमाग बिना कोई चेतावनी दिए ही खुद को धीमा कर देता है - और इसका असर हमारे मूड पर पड़ता है।
इस स्थिति का एक प्रमुख कारण हार्मोनल असंतुलन भी हो सकता है। हमारे मूड को नियंत्रित करने वाले हार्मोन - जैसे डोपामिन और सेरोटोनिन का स्तर जब गिरता है, तो व्यक्ति को उदासी, थकान और चुपचाप रहने की भावना घेर लेती है। यह प्रक्रिया बिना किसी बड़ी वजह के भी हो सकती है।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स- इंटरनेट)
कई बार अधूरी नींद, खराब डाइट, पानी की कमी या लगातार मोबाइल स्क्रीन देखने की वजह से भी दिमाग थक जाता है। इससे अचानक चिड़चिड़ापन, सामाजिक दूरी और अकेलेपन की भावना आ जाती है। खासकर युवा वर्ग में यह स्थिति अधिक देखी जा रही है, क्योंकि वे लगातार सोशल मीडिया, करियर प्रेशर और निजी संघर्षों से जूझ रहे होते हैं।
इसका एक और दिलचस्प कारण आत्मनिरीक्षण (Self-reflection) की प्रवृत्ति भी हो सकता है। जब दिमाग को लगता है कि वह बहुत ज्यादा लोगों से जुड़ गया है, तो वह खुद को 'रीसेट' करने के लिए कुछ समय अकेले रहना चाहता है। इसे एक प्रकार का मानसिक डिटॉक्स भी माना जा सकता है।
हालांकि यह स्थिति अधिकतर मामलों में सामान्य होती है और खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है, लेकिन अगर यह बार-बार होने लगे, लंबी अवधि तक बना रहे या व्यक्ति को रोजमर्रा के कामों से दूर करने लगे, तो यह डिप्रेशन या एंग्जायटी का भी संकेत हो सकता है। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करना जरूरी है।
बदलती जीवनशैली में यह जरूरी हो गया है कि हम अपने मानसिक स्वास्थ्य को भी उतना ही महत्व दें जितना शारीरिक स्वास्थ्य को देते हैं। जब भी मन शांत रहने की मांग करे, तो उसे वक्त दें, खुद को समझने का अवसर दें और जरूरत हो तो अपनों से बात करें।
क्योंकि कभी-कभी मूड ऑफ होना एक संकेत होता है कि अब थमकर खुद को सुनने की जरूरत है।