

भारत में सावन और भाद्रपद महीने में तीज पर्वों का विशेष महत्व है। हरितालिका तीज, हरियाली तीज और कजरी तीज तीनों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अलग-अलग है। आइए जानते हैं इन तीनों तीजों में क्या अंतर है और क्यों मनाई जाती हैं।
हरितालिका तीज (Img: Pinterest)
New Delhi: भारत में तीज-त्योहारों का विशेष महत्व है। सावन और भाद्रपद माह में पड़ने वाली हरितालिका तीज (Haritalika Teej 2025), हरियाली तीज (Hariyali Teej 2025) और कजरी तीज (Kajri Teej 2025) महिलाओं के लिए आस्था और भक्ति का एक बड़ा अवसर हैं। इन तीनों तीज का उद्देश्य पति की लंबी आयु, वैवाहिक सुख और परिवार की समृद्धि की कामना करना है। हालाँकि, अक्सर लोग यह नहीं समझ पाते कि हरितालिका, हरियाली और कजरी तीज में क्या अंतर है और इन्हें क्यों मनाया जाता है। इस लेख में हम आपको इन तीनों तीज की तिथि, महत्व, पूजा विधि और विशेष अंतर के बारे में विस्तार से बताएंगे।
हरितालिका तीज का पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर व्रत रखा था। तभी से यह व्रत सुहागिन और अविवाहित दोनों महिलाएं करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख के लिए व्रत रखती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति की कामना करती हैं।
इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं और पूरी रात जागरण कर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। खास बात यह है कि यह व्रत बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें बिना पानी पिए उपवास रखना पड़ता है।
हरियाली तीज सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। सावन का महीना हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य से भरा होता है, इसलिए इस तीज को हरियाली तीज कहा जाता है।
यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पवित्र मिलन का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं इस दिन हरी चूड़ियां पहनती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं और झूला झूलकर तीज के गीत गाती हैं। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और सुहागिन बनने की परंपरा निभाती हैं। राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में यह पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
कजरी तीज भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। इसे खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इस तीज की खास पहचान है नीम की पूजा और कजरी गीत। महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं।
कजरी तीज का संबंध कृषि और वर्षा से भी जुड़ा है। किसान इस समय अच्छी बारिश और फसल की प्रार्थना करते हैं। यही कारण है कि इस पर्व में लोकगीतों और ग्रामीण संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।