

जन्माष्टमी 2025 इस बार खास है क्योंकि चंद्र भेद के कारण यह पर्व 16 अगस्त को मनाया जाएगा। यह भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव होगा। जानिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री, व्रत विधि और पूजा की सही प्रक्रिया। साथ ही समझें क्यों स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय अलग-अलग तिथि पर यह पर्व मनाते हैं। इस लेख में आपको श्रीकृष्ण जन्मोत्सव से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से मिलेगी।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Img: Google)
New Delhi: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हिंदू धर्म का एक अत्यंत शुभ और पावन पर्व, इस वर्ष 16 अगस्त 2025 को दो दिन मनाया जाएगा। पंचांग गणना के अनुसार, अष्टमी तिथि का प्रारंभ 15 अगस्त रात 11:49 बजे से होकर 16 अगस्त रात 9:34 बजे तक रहेगा। इस बार 16 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे।
यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के 5252वें जन्म की स्मृति में मनाया जा रहा है। श्रीकृष्ण का जन्म रात्रि 12 बजे अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग पर हुआ था, इसलिए इस दिन रात्रि में विशेष पूजा का महत्व है।
जन्माष्टमी पूजा कैसे करें?
रात्रि 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप 'लड्डू गोपाल' को स्नान कराकर उनका अभिषेक करें। इसके लिए जल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बने पंचामृत का प्रयोग करें। अभिषेक के बाद बाल गोपाल को नवीन वस्त्र पहनाकर उन्हें झूले में विराजित करें और मोर पंख, मुरली, मुकुट आदि से श्रृंगार करें।
शंख में जल भरकर स्नान कराना और शंख नाद करना अत्यंत शुभ माना जाता है। पूजा में भोग के रूप में 56 व्यंजन (56 भोग) अर्पित किए जाते हैं। अंत में महाआरती और भजन-कीर्तन होते हैं, जो रातभर चलते हैं।
चौघड़िया के अनुसार शुभ मुहूर्त
चर: प्रातः 05:50 से 07:29 तक
लाभ: 07:29 से 09:08 तक
अमृत: 09:08 से 10:47 तक
शुभ संध्या मुहूर्त: 17:22 से 19:00 तक
व्रत विधि और नियम
व्रत का संकल्प प्रातः स्नान के बाद करें
दिन भर ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करें
अन्न या अनाज ग्रहण न करें, केवल फलाहार लें
दिन में न सोएं, न वाद-विवाद करें
व्रत रात्रि 12 बजे भगवान के जन्म के बाद ही खोला जाता है
फलाहार में: कुट्टू के आटे की पकौड़ी, सिंघाड़े का हलवा, मावा की बर्फी, दूध और फल का सेवन किया जा सकता है।
पूजा सामग्री में क्या-क्या चाहिए?
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के लिए आवश्यक वस्तुएं, लड्डू गोपाल प्रतिमा, झूला, गाय का दूध-दही-घी, शहद, शक्कर, मोर पंख, मुरली, तुलसी, मिश्री, केले के पत्ते, चंदन, दीपक, कपूर, पंचमेवा, फूल, गंगाजल, सुपारी, पान के पत्ते, नारियल और पूजन थाली।
जन्माष्टमी का आध्यात्मिक महत्व
श्रीकृष्ण को धर्म की स्थापना और अधर्म के अंत का प्रतीक माना जाता है। द्वापर युग में अत्याचारी कंस से धरती को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में जन्म लिया। कारागार में जन्म लेने वाले श्रीकृष्ण ने नंद-यशोदा के घर बाल्यकाल बिताया और बाल लीलाओं से सभी को मोहित किया।
उनकी शिक्षाएं और गीता का उपदेश आज भी जीवन को दिशा देते हैं। जन्माष्टमी पर व्रत-पूजन करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति आती है।