Hariyali Amavasya 2025: जुलाई में कब मनाई जाएगी हरियाली अमावस्या, जानें शुभ तिथि, व्रत कथा और महत्व

हरियाली अमावस्या 24 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन वृक्षारोपण, पितृ पूजन और शिव आराधना का विशेष महत्व है। जानिए शुभ तिथि, पूजा विधि और इससे जुड़ी पौराणिक कथा।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 23 July 2025, 8:01 AM IST
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New Delhi: सावन मास की अमावस्या तिथि को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में हरियाली अमावस्या 24 जुलाई को मनाई जाएगी। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

हरियाली अमावस्या की तिथि और मुहूर्त

पंचांग के अनुसार श्रावण मास की अमावस्या तिथि 24 जुलाई 2025 को रात 2:28 बजे से आरंभ होकर 25 जुलाई को रात 12:40 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार हरियाली अमावस्या 24 जुलाई को मनाई जाएगी। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान, दान और पूजन करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।

हरियाली अमावस्या का महत्व

सावन मास में हरियाली अमावस्या का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह दिन प्रकृति को समर्पित माना गया है। चारों ओर हरियाली छा जाती है, जिससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दिन मंदिरों में भगवान का हरे वस्त्रों से विशेष श्रृंगार किया जाता है।

Importance of Hariyali Amavasya (Source-Google)

हरियाली अमावस्या का महत्व (सोर्स-गूगल)

पौधारोपण करना इस दिन का सबसे प्रमुख कार्य है। पीपल, बरगद, आंवला, आम, नीम जैसे पौधे लगाने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-शांति आती है।

हरियाली अमावस्या पर किए जाने वाले प्रमुख कार्य

पितृ पूजन एवं नवग्रह शांति: इस दिन पितरों को तर्पण और नवग्रहों की शांति के लिए पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।

शिव पूजन: हरियाली अमावस्या पर शिवलिंग पर जल अर्पण करना, लिंगाष्टकम का पाठ करना और व्रत रखना विशेष फलदायी माना जाता है।

वृक्षारोपण: पर्यावरण संरक्षण के लिए यह दिन आदर्श माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पौधा रोपण से ग्रह दोष भी शांत होते हैं।

हरियाली अमावस्या व्रत कथा

प्राचीन काल में एक राजा की बहू पर झूठा आरोप लगाया गया, जिसके चलते उसे महल से निकाल दिया गया। वह रोज़ एक पीपल के वृक्ष के नीचे दीप जलाकर पूजा करने लगी। कुछ समय बाद उसी वृक्ष के दिव्य प्रभाव से राजा को सच्चाई का ज्ञान हुआ और उन्होंने बहू को सम्मान सहित महल वापस बुला लिया। यह कथा बताती है कि प्रकृति की उपासना और सच्चे मन से की गई पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती।

डिस्क्लेमर

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। डाइनामाइट न्यूज़ इस लेख में दी गई जानकारी को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है। धार्मिक कार्यों से पूर्व अपनी आस्था और परंपरा अनुसार विशेषज्ञ या आचार्य की सलाह लेना उचित रहेगा।

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