Friendship Day 2025: क्या दोस्ती सिर्फ ऑनलाइन रह गई है? पढ़िए कैसे रील्स, रिएक्शन और चैट ने बदल दिए रिश्तों के मायने

फ्रेंडशिप डे 2025 के मौके पर हम एक नज़र डालते हैं कि कैसे सोशल मीडिया और डिजिटल तकनीक ने दोस्ती के स्वरूप को बदल दिया है। कभी जो दोस्ती गलियों, स्कूलों और कैंटीनों में पनपती थी, आज वो रील्स, स्टोरीज़ और चैट तक सिमट गई है। इस रिपोर्ट में जानिए नई पीढ़ी की सोच, मनोवैज्ञानिकों की राय और उस दोस्ती की सच्चाई जो अब ऑनलाइन दिखती है लेकिन ऑफलाइन शायद महसूस नहीं होती।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 3 August 2025, 8:22 AM IST
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New Delhi: सोशल मीडिया की तेज़ रफ्तार दुनिया में दोस्ती का चेहरा बदल चुका है। जहां पहले दोस्ती का मतलब साथ बैठना, चिट्ठियां लिखना और घंटों बातें करना था, वहीं आज दोस्ती अक्सर रील्स पर टैग करने, स्टोरी पर हार्ट भेजने और चैट्स में "LOL" टाइप करने तक सीमित हो गई है। फ्रेंडशिप डे 2025 पर हम जानने की कोशिश करते हैं कि आज की पीढ़ी के लिए दोस्ती के मायने क्या हैं और क्या डिजिटल दुनिया ने रिश्तों की गहराई को कहीं छीन तो नहीं लिया?

नई पीढ़ी की दोस्ती बनाम 90s की दोस्ती

90 के दशक की दोस्ती में मोबाइल या इंटरनेट नहीं था, लेकिन समय और साथ की कोई कमी नहीं थी। मोहल्ले की गली, स्कूल की बेंच और कॉलेज की कैंटीन वो जगहें थीं जहां दोस्ती परखी जाती थी। वहीं आज की दोस्ती वर्चुअल है। इंस्टाग्राम पर ‘बेस्ट फ्रेंड फॉरएवर’ टैग करना, व्हाट्सएप ग्रुप्स में मीम्स शेयर करना और स्नैपचैट पर स्ट्रीक्स बनाए रखना ही दोस्ती का नया रूप बन चुका है। दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा नेहा मलिक कहती हैं, "मेरे सबसे अच्छे दोस्त को मैंने पिछले एक साल से सिर्फ ऑनलाइन देखा है। हम रोज़ चैट करते हैं, लेकिन मिलने का टाइम किसी के पास नहीं होता।"

डिजिटल दोस्त बनाम असल ज़िंदगी के दोस्त

आज एक व्यक्ति के सोशल मीडिया पर सैकड़ों "दोस्त" होते हैं, लेकिन असल ज़िंदगी में शायद ही दो या तीन ऐसे हों जिनसे दिल की बातें की जाती हों। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने दोस्ती को तेजी से जोड़ना तो सिखा दिया है, लेकिन उसकी गहराई और टिकाऊपन पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

साइकोलॉजिस्ट कहती हैं, "डिजिटल दोस्ती में एक्सपोज़र ज्यादा है लेकिन इमोशनल कनेक्शन कमजोर होता जा रहा है। लाइक्स और कमेंट्स से जुड़ाव नहीं, सिर्फ तात्कालिक संतुष्टि मिलती है।"

युवाओं की राय

बेंगलुरु के एक इंजीनियरिंग छात्र राहुल मिश्रा का कहना है, "मेरे ऑनलाइन दोस्त PUBG के ज़रिए बने, जो अब मेरे सबसे करीबी बन गए हैं। हम भले ही कभी मिले नहीं हों, लेकिन रोज़ 2 घंटे साथ खेलते हैं और हर बात शेयर करते हैं।"

वहीं मुंबई की सोशल मीडिया एक्सपर्ट श्रेया घोष मानती हैं कि "रील्स और स्टोरीज़ से दोस्ती जताई जाती है, लेकिन असल में भावनात्मक जुड़ाव बहुत कम होता है।"

क्या यह बदलाव अच्छा है?

तकनीक ने जहां दूरियों को कम किया है, वहीं असली मुलाकातों की अहमियत को भी कम किया है। दोस्ती अब भावों से ज्यादा प्रूफ पर आधारित हो गई है – कौन कितना रिप्लाई करता है, कौन कितनी बार लाइक करता है, कौन स्टोरी में टैग करता है।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 3 August 2025, 8:22 AM IST

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