

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सेहत और हाल ही में सामने आए हाथ पर चोट के निशान ने सियासी हलचल बढ़ा दी है। इसी बीच उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का बयान सामने आया है। जिसके बाद यह सवाल उठने लगा है कि अमेरिका में अगर राष्ट्रपति पद खाली होता है तो सत्ता किसके हाथ में जाती है? आइए जानते हैं अमेरिका और भारत के सिस्टम में क्या फर्क है।
ट्रंप के स्वास्थ्य पर मचा सियासी हंगामा
New Delhi: डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों वैश्विक व्यापार नीतियों और टैरिफ को लेकर लगातार सुर्खियों में हैं। लेकिन इन सबके बीच एक तस्वीर ने अमेरिकी राजनीति में हलचल मचा दी। ट्रंप के हाथ पर नीले रंग का एक बड़ा निशान देखने के बाद उनकी सेहत पर चर्चाएं शुरू हो गईं। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए यह चिंता लाजिमी है। इसी बीच उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का बयान सामने आया, जिसने स्थिति को और भी संवेदनशील बना दिया। वेंस ने साफ कहा कि वे राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने के लिए तैयार हैं, अगर ट्रंप के साथ कोई गंभीर त्रासदी होती है।
जेडी वेंस ने यूएसए टुडे को दिए इंटरव्यू में कहा कि वे किसी भी अप्रत्याशित परिस्थिति के लिए पूरी तरह तैयार हैं। इस बयान ने न केवल ट्रंप की सेहत पर चर्चा को और हवा दी बल्कि यह भी सवाल उठने लगे कि अमेरिका में सत्ता का हस्तांतरण किस तरह होता है। खास बात यह है कि ट्रंप ने भी वेंस को “MAGA आंदोलन का संभावित उत्तराधिकारी” बताया था। ऐसे में यह साफ है कि अगर ट्रंप किसी वजह से पद पर बने नहीं रह पाते, तो वेंस ही पहला विकल्प होंगे।
ट्रंप के स्वास्थ्य पर मचा सियासी हंगामा
अमेरिकी संविधान राष्ट्रपति को देश का सबसे बड़ा कार्यकारी और संवैधानिक प्रमुख मानता है। वहां यह साफ प्रावधान है कि अगर राष्ट्रपति का निधन हो जाए या वे काम करने में अक्षम हो जाएं, तो उपराष्ट्रपति तुरंत ही पूर्ण राष्ट्रपति बन जाते हैं। उपराष्ट्रपति केवल कार्यवाहक राष्ट्रपति नहीं होते बल्कि शेष कार्यकाल के लिए ही राष्ट्रपति बने रहते हैं। अगर उपराष्ट्रपति भी किसी कारण से उपलब्ध न हों, तो वहां एक तयशुदा Line of Succession लागू होती है। इस क्रम में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के स्पीकर, सीनेट के प्रेजिडेंट प्रो टेम्पोर और फिर कैबिनेट के सदस्य आते हैं। कैबिनेट में भी विदेश मंत्री को प्राथमिकता दी जाती है और उसके बाद अन्य मंत्रालयों के प्रमुख आते हैं। इस व्यवस्था का उद्देश्य यही है कि अमेरिका में कभी भी सत्ता का खालीपन न रहे।
भारत में भी राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है, लेकिन यहां का सिस्टम थोड़ा अलग है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 65 इस स्थिति को नियंत्रित करता है। राष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफे या पद खाली होने की स्थिति में उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाते हैं। अगर उपराष्ट्रपति भी उपलब्ध न हों तो यह जिम्मेदारी सीधे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को मिलती है। यह स्थिति अस्थायी होती है और नए राष्ट्रपति का चुनाव छह महीने के भीतर कराना अनिवार्य है।
भारत में राष्ट्रपति भले ही सर्वोच्च संवैधानिक पद हो, लेकिन कार्यपालिका का असली नेतृत्व प्रधानमंत्री करते हैं। अगर प्रधानमंत्री का निधन हो जाए तो उनका पद तुरंत खाली हो जाता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति सरकार चलाने के लिए कैबिनेट के किसी वरिष्ठ मंत्री को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना देते हैं। इसके बाद सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन अपने सांसदों की बैठक कर नया नेता चुनता है। जिसे बहुमत का समर्थन मिलता है, उसे राष्ट्रपति स्थायी प्रधानमंत्री नियुक्त कर देते हैं।
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अमेरिका जैसे मजबूत लोकतंत्र में तख्तापलट जैसी स्थिति की संभावना बेहद कम है। वहां सत्ता के हस्तांतरण की व्यवस्था इतनी सुदृढ़ है कि राष्ट्रपति पद कभी खाली नहीं रहता। जेडी वेंस का बयान भले ही सनसनीखेज लग सकता है, लेकिन यह अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था का ही हिस्सा है, जिसमें उपराष्ट्रपति को हर स्थिति में तैयार रहना होता है।
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