New Delhi: भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने के बाद पाकिस्तान की बेचैनी लगातार बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है। पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने कतर के दोहा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र विश्व सामाजिक विकास सम्मेलन में यह मुद्दा उठाया और भारत पर गंभीर आरोप लगाए।
ज़रदारी ने सम्मेलन में कहा कि भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ पानी को एक “हथियार” के रूप में इस्तेमाल किया है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से इस मामले में हस्तक्षेप करने और “न्याय, शांति और समानता” बनाए रखने में भूमिका निभाने की अपील की।
भारत पर “पानी को हथियार बनाने” का आरोप
पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने कहा कि सिंधु जल संधि का निलंबन पाकिस्तान के 24 करोड़ नागरिकों के लिए एक गंभीर ख़तरा है। उन्होंने दावा किया कि भारत की नीति पाकिस्तान को पानी से वंचित करने की एक कोशिश है, जो किसी भी हालत में अस्वीकार्य है।
अपने बयान में, ज़रदारी ने कहा, “हम इस तरह की दबाव की रणनीति को कभी कामयाब नहीं होने देंगे। पानी रोकना हमारे लोगों के अधिकारों पर हमला है।” उन्होंने भारत पर “अंतर्राष्ट्रीय कानून” का उल्लंघन करने और “क्षेत्रीय स्थिरता” को नुकसान पहुँचाने का भी आरोप लगाया।
कश्मीर और फ़िलिस्तीन के मुद्दे भी उठाए गए
ज़रदारी ने अपने भाषण में एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि “फ़िलिस्तीन और कश्मीर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं” और दोनों जगहों पर “अन्याय और उत्पीड़न” हो रहा है। इस बयान को भारत के ख़िलाफ़ एक और अंतरराष्ट्रीय दुष्प्रचार के तौर पर देखा जा रहा है।
भारत के कड़े कदम से पाकिस्तान में खलबली
22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले में 26 निर्दोष लोगों की हत्या के बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाने के बाद पाकिस्तान की हताशा बढ़ गई। इस हमले के बाद, भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फ़ैसला किया। इस कदम के बाद से, पाकिस्तान लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी “जल याचिका” उठा रहा है।
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत तभी होगी जब वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ ठोस कार्रवाई करेगा। भारत का रुख़ यह है कि “आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते।”
सिंधु जल संधि क्या है?
विश्व बैंक की मध्यस्थता में 19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके तहत, छह नदियों व्यास, रावी और सतलुज का जल भारत को आवंटित किया गया था, जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु का जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया था।
यह समझौता दशकों तक दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का आधार रहा। हालाँकि, भारत द्वारा इस संधि को स्थगित करने के फैसले से पाकिस्तान बेहद चिंतित है, क्योंकि उसकी कृषि और पेयजल आपूर्ति काफी हद तक इन नदियों पर निर्भर है।
हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया है कि यह कदम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ उठाया गया था और यह देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय हित से जुड़ा मामला है। इस बीच पाकिस्तान अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर इस मुद्दे पर “सहानुभूति” बटोरने की कोशिश कर रहा है।
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जरदारी के हालिया बयान को इसी बेचैनी का नतीजा माना जा रहा है, जिससे पता चलता है कि भारत के इस सख्त फैसले से पाकिस्तान चिंतित है।

