

डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए वैश्विक टैरिफ के कारण भले ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अस्थिरता बनी हुई है, लेकिन भारतीय रुपये ने मंगलवार को शुरुआती कारोबार में मजबूती दिखाई। जानिए सोमवार की गिरावट के बाद कैसे रुपये ने रिकवरी की और बाजार किन कारणों से प्रभावित हुआ।
रुपये ने दिखाई मजबूती
New Delhi: अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए आयात शुल्क (टैरिफ) को लेकर वैश्विक बाजारों में चिंता और अनिश्चितता बनी हुई है। इसका असर कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है, जिनमें भारत भी शामिल है। हालांकि, इन सबके बीच भारतीय रुपये ने मंगलवार को शुरुआती कारोबार में थोड़ी राहत दी। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 7 पैसे मजबूत होकर खुला, जो निवेशकों और व्यापारियों के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह मजबूती ऐसे समय में आई है जब वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव जारी है और कच्चे तेल की कीमतें भी ऊंचाई पर बनी हुई हैं। बाजार विश्लेषकों का मानना है कि यह रिकवरी अल्पकालिक हो सकती है, लेकिन यह भारतीय मुद्रा की स्थिरता का संकेत भी देती है।
सोमवार को रुपये में आई थी गिरावट
सोमवार को भारतीय रुपये ने निराशाजनक प्रदर्शन किया था। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 17 पैसे कमजोर होकर 87.75 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ। यह गिरावट मुख्य रूप से आयातकों की ओर से डॉलर की बढ़ती मांग, कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली के कारण हुई। विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने बताया कि सोमवार को रुपये ने शुरुआती मजबूती जरूर दिखाई थी, लेकिन दिन के अंत तक वह यह बढ़त बरकरार नहीं रख सका। इसका मुख्य कारण विदेशी पूंजी का बहिर्गमन और आयातकों की ओर से डॉलर की अधिक मांग रही, जिससे रुपये पर दबाव बना।
मंगलवार को हुआ सुधार
मंगलवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 87.56 रुपये प्रति डॉलर पर खुला। दिनभर के कारोबार में यह 87.48 से लेकर 87.75 के दायरे में रहा। कारोबार की समाप्ति पर रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 7 पैसे की मजबूती के साथ अपना स्थान मजबूत किया। यह बढ़त आंशिक रूप से डॉलर की कमजोरी और कुछ हद तक विदेशी निवेश की प्रवृत्ति में आई सकारात्मकता के कारण हुई। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह मजबूती अस्थायी हो सकती है, खासकर तब जब कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही हों और वैश्विक अनिश्चितता बनी हुई हो।
निवेशकों के लिए क्या संकेत हैं?
विश्लेषकों के अनुसार, अगर वैश्विक अनिश्चितता और टैरिफ से जुड़ी चिंताएं बनी रहीं, तो भारतीय रुपये को आगे और दबाव का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तरफ से कोई हस्तक्षेप या नीति समर्थन आने की संभावना है, जिससे मुद्रा बाजार में स्थिरता लाई जा सके। कच्चे तेल की कीमतें और विदेशी पूंजी प्रवाह दो ऐसे प्रमुख कारक हैं जो निकट भविष्य में रुपये की दिशा तय करेंगे। साथ ही, डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों और अमेरिका में आगामी चुनावों को लेकर होने वाले निर्णय भी विदेशी मुद्रा बाजार पर असर डाल सकते हैं।