

डोनाल्ड ट्रंप की फार्मा टैरिफ नीति फिलहाल होल्ड पर है, क्योंकि सरकार कंपनियों से बातचीत कर रही है। उद्देश्य है- अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना और दवाओं की कीमतों को कम करना।
डोनाल्ड ट्रंप की फार्मा टैरिफ
New Delhi: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ समय पहले एक बड़ा और विवादित फैसला लिया था- विदेशों से आयात की जाने वाली ब्रांडेड और पेटेंट दवाओं पर 100% टैरिफ लगाने का। यह टैरिफ 1 अक्टूबर 2025 से लागू होने वाला था, लेकिन तारीख बीत जाने के बावजूद यह अब तक अमल में नहीं आया है। अब सवाल ये उठता है कि क्या ट्रंप का मूड बदल गया है, या फिर इसके पीछे कोई रणनीतिक कारण है?
ट्रंप प्रशासन का यह फैसला अमेरिका की फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से लिया गया था। उनका मानना है कि अमेरिका को अब विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, खासकर दवाओं जैसे संवेदनशील सेक्टर में। इस फैसले के जरिए अमेरिका में दवाओं का घरेलू उत्पादन बढ़ाने, रोजगार के अवसर पैदा करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने की बात कही गई थी।
हालांकि, इस टैरिफ के दायरे से उन विदेशी कंपनियों को बाहर रखा गया, जो अमेरिका में अपना मैन्युफैक्चरिंग प्लांट स्थापित कर रही हैं या कर चुकी हैं। यानी कि जो कंपनियां 'Make in America' विजन के तहत काम कर रही हैं, उन्हें राहत दी गई है।
अब जब 1 अक्टूबर गुजर चुका है और टैरिफ लागू नहीं हुआ, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि ट्रंप के इस फैसले में देरी क्यों हो रही है। इसके पीछे तीन प्रमुख कारण सामने आ रहे हैं:
कंपनियों से चल रही बातचीत: ट्रंप प्रशासन अभी भी बड़ी फार्मा कंपनियों के साथ चर्चा कर रहा है ताकि वे अमेरिका में उत्पादन को तेज़ी से बढ़ाएं। सरकार चाहती है कि कंपनियां पहले मैन्युफैक्चरिंग योजनाओं पर स्पष्ट रोडमैप दें, फिर टैक्स या टैरिफ का दबाव बनाया जाए।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
दवाओं की कीमतें कम करने के प्रस्ताव: कुछ कंपनियों ने सरकार को ऑफर दिया है कि अगर टैरिफ न लगाया जाए, तो वे अमेरिका में दवाओं की कीमतें कम करने को तैयार हैं। इन प्रस्तावों पर अभी मंथन जारी है।
राजनीतिक और वैश्विक दबाव: एक्सपर्ट्स का मानना है कि 100% टैरिफ जैसे कदम से अमेरिका के ट्रेड पार्टनर्स के साथ रिश्ते खराब हो सकते हैं। इसके अलावा, ग्लोबल सप्लाई चेन भी बाधित हो सकती है, जिससे आम अमेरिकी मरीजों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इस बीच फार्मा इंडस्ट्री की दिग्गज कंपनी फाइजर (Pfizer) ने ट्रंप प्रशासन के साथ एक अहम समझौता किया है। कंपनी ने अमेरिका में 70 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है और साथ ही दवाओं की कीमतों में कटौती करने का भी आश्वासन दिया है। यह ट्रंप सरकार की बड़ी जीत मानी जा रही है क्योंकि इससे उनके 'America First' एजेंडे को बल मिलता है और घरेलू उत्पादन को नई रफ्तार मिलने की उम्मीद है।
सूत्रों के अनुसार, ट्रंप प्रशासन एक नई वेबसाइट 'TrumpRx' लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है। यह वेबसाइट मरीजों को डिस्काउंटेड मेडिसिन्स के बारे में जानकारी देगी और बताएगी कि कौन-सी दवाई किस प्लेटफॉर्म पर सस्ती मिल रही है। इसे एक तरह का सर्च टूल माना जा रहा है, जिससे दवा खरीदना सरल और किफायती बन सकेगा।
यह कदम आम अमेरिकी मरीजों के लिए राहत लेकर आ सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो महंगी दवाओं का खर्च नहीं उठा सकते।
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हालांकि, अभी तक टैरिफ लागू नहीं हुआ है, लेकिन व्हाइट हाउस ने साफ कर दिया है कि यह फैसला टला है, रद्द नहीं हुआ। यानी ट्रंप का 100% फार्मा टैरिफ भविष्य में कभी भी लागू हो सकता है।
यह तय है कि ट्रंप अपने 'America First' अभियान को आगे बढ़ाने के लिए फार्मा इंडस्ट्री पर सख्त नजर बनाए हुए हैं। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कंपनियां झुकती हैं, या फिर ट्रंप अपने रुख में बदलाव लाते हैं।
फिलहाल भले ही 100% फार्मा टैरिफ लागू नहीं हुआ है, लेकिन ट्रंप की योजना अभी भी मेज पर है। फाइजर जैसे बड़े निवेश और ट्रंप की ‘TrumpRx’ वेबसाइट जैसे कदमों से यह साफ है कि अमेरिका दवा क्षेत्र में अपनी निर्भरता घटाने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। टैरिफ में देरी एक रणनीतिक चाल हो सकती है- ताकि उद्योग को झटका देने के बजाय बातचीत के जरिए लक्ष्य हासिल किया जा सके।