

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 2024-25 में अब तक 1.27 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेच दिए हैं। वैश्विक अनिश्चितताओं और अमेरिकी टैरिफ तनाव ने निवेशकों की धारणा को कमजोर किया है। हालांकि, डेट सेगमेंट में विदेशी निवेश अभी भी मजबूत बना हुआ है।
इन सेक्टर्स में सबसे ज्यादा बिकवाली
New Delhi: वैश्विक वित्तीय हालात की सख्ती और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) का भरोसा भारतीय शेयर बाजार से उठता नजर आ रहा है। सेबी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय इक्विटी सेगमेंट से 1.27 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेच दिए हैं। यह आंकड़ा साल के समाप्त होने से पहले ही एक रिकॉर्ड बना चुका है, जो 2021-22 की कुल बिकवाली से भी अधिक है।
बिकवाली के इस बड़े ट्रेंड के पीछे अमेरिका द्वारा चीन और रूस पर लगाए गए टैरिफ, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स में बढ़ोतरी और कुछ भारतीय कंपनियों के कमजोर तिमाही नतीजे जैसे कई फैक्टर जिम्मेदार हैं। साथ ही, दुनिया भर में एसेट एलोकेशन की प्राथमिकताओं में बदलाव के चलते भारत की रैंकिंग फिसलती जा रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, एफपीआई अब लॉन्ग-टर्म होल्डिंग के बजाय शॉर्ट-टर्म एलोकेशन स्ट्रैटेजी पर ध्यान दे रहे हैं। यानी वे किसी एक बाजार में टिककर निवेश करने के बजाय विविधता और जोखिम प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
जेएम फाइनेंशियल की एक स्टडी में सामने आया कि जुलाई महीने में सबसे ज्यादा बिकवाली आईटी, BFSI, रियल्टी, ऑयल एंड गैस (O&G) और ड्यूरेबल्स जैसे क्षेत्रों में हुई। अकेले आईटी सेक्टर में ही 2,285 मिलियन डॉलर की बिकवाली देखी गई, जबकि BFSI से 671 मिलियन डॉलर, रियल्टी से 450 मिलियन डॉलर, ऑटो से 412 मिलियन डॉलर और O&G सेक्टर से 372 मिलियन डॉलर का पूंजी बहिर्वाह हुआ।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
हालांकि, पूरी तरह से निराशाजनक तस्वीर नहीं है। कुछ क्षेत्रों में विदेशी निवेशकों की खरीदारी भी देखी गई। मेटल सेक्टर में 388 मिलियन डॉलर, सर्विस सेक्टर में 347 मिलियन डॉलर, FMCG में 175 मिलियन डॉलर, टेलीकॉम में 169 मिलियन डॉलर और केमिकल्स सेक्टर में 130 मिलियन डॉलर का निवेश हुआ।
शेयर बाजार में बिकवाली के बावजूद एफपीआई डेट सेगमेंट में सक्रिय बने हुए हैं। इस क्षेत्र में 1.4 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ है, जो यह दर्शाता है कि जोखिम भरे इक्विटी निवेश के बजाय निवेशक स्थिर और निश्चित रिटर्न देने वाले विकल्पों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक वैश्विक अनिश्चितताएं बनी रहती हैं और अमेरिका तथा अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की मौद्रिक नीति में सख्ती जारी रहती है, तब तक भारतीय बाजार में एफपीआई की भागीदारी सीमित रह सकती है। हालांकि, भारत की दीर्घकालिक संभावनाएं अभी भी मजबूत हैं, और बाजार में स्थिरता लौटते ही निवेश फिर से बढ़ सकता है।