DN Exclusive: बिहार के चुनावी दंगल में कितना मजबूत है महागठबंधन, कौन किस पर पड़ेगा भारी?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन नेतृत्व, रणनीति और मुद्दों की स्पष्टता की कमी से जूझ रहा है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर संशय बना हुआ है, जबकि मोदी-नीतीश की जोड़ी एनडीए को मजबूती दे रही है। नए राजनीतिक फैक्टर भी महागठबंधन के समीकरण बिगाड़ रहे हैं।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 5 October 2025, 7:53 PM IST
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Patna: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, सियासी हलचल तेज होती जा रही है। महागठबंधन जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं, सत्ता विरोधी लहर को भुनाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, महागठबंधन को सबसे बड़ी चुनौती उसके नेतृत्व, रणनीति और मुद्दों की स्पष्टता की कमी से मिल रही है। तेजस्वी यादव भले ही युवा नेता हैं, लेकिन उनके नेतृत्व पर अभी भी भ्रम की स्थिति है- न केवल जनता में, बल्कि सहयोगी दलों में भी।

मोदी और नीतीश की जोड़ी बना रही मजबूत समीकरण

दूसरी ओर, एनडीए की स्थिति पहले से ज्यादा सशक्त दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पकड़ और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अनुभव, इस गठबंधन को भरोसेमंद विकल्प बना रहे हैं। सर्वेक्षणों में यह साफ दिख रहा है कि मोदी-नीतीश की जोड़ी मतदाताओं के बीच स्थिरता, विकास और प्रशासनिक नियंत्रण का प्रतीक बन गई है।

Bihar elections (file photo)

बिहार चुनाव (फाइल फोटो)

महागठबंधन के पास नहीं है ठोस नैरेटिव

महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी यह भी है कि अब तक वह जनता के सामने कोई ठोस एजेंडा या नैरेटिव पेश नहीं कर पाया है। केवल एनडीए विरोध या नीतीश विरोध की राजनीति से मतदाता आकर्षित नहीं हो रहे हैं। बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर कोई स्पष्ट योजना नहीं दिख रही, जिससे मतदाताओं का भरोसा कमजोर पड़ा है।

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कांग्रेस की सीमित भूमिका और अंदरूनी असहमति

गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका सीमित और प्रभावहीन नजर आ रही है। राज्य में न तो कांग्रेस का कोई बड़ा चेहरा है और न ही मजबूत संगठनात्मक ढांचा। इससे महागठबंधन को सीटों के तालमेल से ज्यादा कोई फायदा नहीं मिल रहा।

नई राजनीतिक ताकतों की एंट्री बनी चुनौती

प्रशांत किशोर की 'जनसुराज' और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम जैसे नए राजनीतिक फैक्टर भी महागठबंधन के वोटबैंक में सेंध लगा सकते हैं। सीमांचल में ओवैसी की पकड़ और शहरी क्षेत्रों में पीके का असर महागठबंधन के पारंपरिक समीकरण को कमजोर कर सकता है।

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बिहार का चुनावी दंगल बेहद दिलचस्प मोड़ पर है। जहां एनडीए अपने संगठित नेतृत्व और स्पष्ट संदेश के साथ मैदान में है, वहीं महागठबंधन को नेतृत्व, मुद्दों और एकजुटता की कसौटी पर खुद को साबित करना बाकी है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो एनडीए का पलड़ा भारी पड़ता दिख रहा है।

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  • Patna

Published : 
  • 5 October 2025, 7:53 PM IST