बिहार की सियासी पटकथा: 2005 से 2025 तक नीतीश बनाम लालू, बदलते समीकरणों की पूरी कहानी; यहां जानें

बिहार की राजनीति में पिछले दो दशकों की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। गठबंधन बनते-बिगड़ते रहे, नेता बदलते रहे, मगर सत्ता की कुर्सी पर दो ही चेहरे सबसे ज़्यादा नज़र आए नीतीश कुमार और लालू यादव परिवार। पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 13 November 2025, 3:29 PM IST
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Patna: बिहार की राजनीति में पिछले दो दशकों की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। गठबंधन बनते-बिगड़ते रहे, नेता बदलते रहे, मगर सत्ता की कुर्सी पर दो ही चेहरे सबसे ज़्यादा नज़र आए नीतीश कुमार और लालू यादव परिवार। 2005 से 2025 तक के बीच बिहार ने पांच विधानसभा चुनाव देखे और इस दौरान मुख्यमंत्री पद की शपथ 10 बार ली गई। आइए जानते हैं कैसे बदले सियासी समीकरण और जनता के फैसले।

2005: कोई नहीं बना मुख्यमंत्री, फिर नीतीश की एंट्री

फरवरी 2005 में बिहार विभाजन (झारखंड अलग राज्य बनने) के बाद पहला चुनाव हुआ। मतदाता थे 5.26 करोड़, लेकिन मतदान सिर्फ़ 46.5% हुआ। नतीजे आए तो किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। राजद 75 सीटों पर सिमट गई, जदयू को 55, भाजपा को 37 और लोजपा को 29 सीटें मिलीं। लोजपा “किंगमेकर” बनी, लेकिन कोई भी स्थायी सरकार नहीं बना सका। राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और अक्टूबर 2005 में दोबारा चुनाव कराए गए। दूसरे चुनाव में एनडीए (जदयू-भाजपा) को बहुमत मिला और नीतीश कुमार पहली बार पूर्णकालिक मुख्यमंत्री बने।

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2010: नीतीश की सुनामी, एनडीए की ऐतिहासिक जीत

2010 के चुनाव में विकास पुरुष की छवि के साथ नीतीश कुमार ने जोरदार वापसी की। 5.51 करोड़ मतदाताओं में से 52.6% ने मतदान किया। जदयू को 115 और भाजपा को 91 सीटें मिलीं। एनडीए ने 206 सीटें जीतकर बिहार की राजनीति में साफ-सुथरे शासन की छवि गढ़ी। राजद और लोजपा गठबंधन सिर्फ 25 सीटों तक सिमट गया। हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच जदयू को सिर्फ 2 सीटें मिलीं, और नीतीश ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया।

2015: 20 साल बाद नीतीश-लालू की दोस्ती

2015 का चुनाव बिहार की सियासत में सबसे नाटकीय रहा। नीतीश और लालू, दो दशक बाद एक साथ आए और “महागठबंधन” बनाया। मतदान 56.6% हुआ और महागठबंधन ने 178 सीटें जीतकर एनडीए को मात दी। राजद 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि जदयू को 71 सीटें मिलीं। मुख्यमंत्री नीतीश बने, लेकिन 20 महीने बाद भ्रष्टाचार के आरोपों पर उन्होंने लालू परिवार से किनारा कर लिया और फिर से भाजपा का साथ पकड़ लिया।

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2020: नीतीश जीते, पर भाजपा हुई मजबूत

2020 में बिहार के 7 करोड़ मतदाताओं में 58.7% ने वोट डाले। राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी (75 सीटें), लेकिन एनडीए ने 125 सीटों के साथ सरकार बनाई। भाजपा को 74, जदयू को सिर्फ 43 सीटें मिलीं यानी भाजपा अब गठबंधन में वरिष्ठ साझेदार बन गई। नीतीश कुमार हालांकि मुख्यमंत्री बने रहे, पर सत्ता समीकरण अब पूरी तरह बदल चुका था।

2022 से 2024: पाला बदलने का सिलसिला जारी

भाजपा और जदयू के बीच रिश्ते बिगड़े। नीतीश ने 2022 में भाजपा से नाता तोड़ा और महागठबंधन में शामिल होकर फिर मुख्यमंत्री बने। लेकिन यह साथ ज़्यादा दिन नहीं चला जनवरी 2024 में उन्होंने एक बार फिर पलटी मारी और एनडीए में लौट आए। इस तरह नीतीश कुमार ने 10 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर इतिहास रचा एक ऐसा रिकॉर्ड जो भारतीय राजनीति में कम ही देखने को मिलता है।

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बदलते बिहार की सियासी कहानी

बीते 20 सालों में बिहार की राजनीति विकास, जातीय समीकरण और गठबंधन राजनीति के बीच झूलती रही। राज्य ने दो ही चेहरों नीतीश कुमार और लालू यादव परिवार को बार-बार सत्ता में देखा। अब 2025 में सवाल यही है क्या बिहार फिर से नीतीश पर भरोसा करेगा, या जनता इस बार किसी नए नेतृत्व को मौका देगी? इतिहास गवाह है: बिहार की राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं सिवाय बदलाव के।

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  • Patna

Published : 
  • 13 November 2025, 3:29 PM IST