कानपुर में लोग घरों के बाहर लाल रंग से भरी प्लास्टिक बोतलें लटका रहे हैं, जिसे आवारा कुत्तों को भगाने का तरीका माना जा रहा है। हालांकि, पशु चिकित्सकों के मुताबिक यह उपाय वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं है, लेकिन लोगों का दावा है कि इससे फर्क पड़ा है।

कुत्तों से निपटने का देसी जुगाड़ या सिर्फ टोटका?
Kanpur: उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में इन दिनों एक अजीब लेकिन दिलचस्प नजारा देखा जा रहा है। कई इलाकों में लोग अपने घरों के बाहर लाल रंग से भरी प्लास्टिक बोतलें लटका रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसका वीडियो वायरल होते ही लोग इसे लेकर तरह-तरह के अनुमान लगाने लगे हैं। एक वर्ग इसे कुत्तों को भगाने का देसी जुगाड़ मान रहा है, तो दूसरा इसे एक तरह का टोटका कह रहा है। आइए जानते हैं, यह लाल बोतलें आखिर किस उद्देश्य से लटकाई जा रही हैं और क्या इनका वास्तव में कुत्तों पर कोई असर पड़ता है?
कानपुर के कई रिहायशी इलाकों में इस लाल बोतल ट्रेंड को देखा जा सकता है। किदवई नगर, जूही, कोयला नगर, मंगला बिहार, बर्रा, विश्वबैंक, स्वरूप नगर और कर्नलगंज जैसे इलाकों में लोग अपने घरों के बाहर इस तरह की बोतलें टांगते या रखते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह तरीका देखते ही देखते पूरे मोहल्लों में फैल गया है।
स्थानीय निवासियों के मुताबिक, यह तरीका आवारा कुत्तों को घर के सामने मल-मूत्र करने से रोकने के लिए अपनाया जा रहा है। एक निवासी ने बताया, "रोज सुबह कुत्तों की गंदगी से जूझना पड़ता था। फिर एक पड़ोसी ने मुझे लाल रंग मिलाकर बोतल टांगने की सलाह दी। जब से यह तरीका अपनाया, कुत्तों की गंदगी में काफी कमी आई।" इसी वजह से यह उपाय जल्द ही लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया है।
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— आजाद भारत का आजाद नागरिक (@AnathNagrik) December 16, 2025
यह ट्रेंड केवल कानपुर तक सीमित नहीं है। मध्य प्रदेश के सागर, इंदौर, महाराष्ट्र के पुणे, पश्चिम बंगाल के कोलकाता, यूपी के वाराणसी और गुजरात के राजकोट में भी लोग इस तरह की बोतलें लटका रहे हैं। कुछ इलाकों में लोग नील (ब्लूइंग पाउडर) या फूड कलर भी इन बोतलों में मिला रहे हैं।
लोगों का कहना है कि धूप में बोतल से निकलने वाली रंगीन चमक या नील की गंध कुत्तों को डराती है। लेकिन पशु चिकित्सकों और विशेषज्ञों की राय इससे अलग है। विशेषज्ञों के अनुसार, कुत्ते लाल रंग को ठीक से देख नहीं पाते। कुत्तों की दृष्टि मुख्य रूप से नीले और पीले रंगों पर आधारित होती है, जबकि लाल रंग उन्हें भूरा या ग्रे शेड में नजर आता है।
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पशु चिकित्सकों का कहना है कि यह उपाय वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं है। कई बार यह सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव (प्लेसिबो इफेक्ट) हो सकता है, जिससे लोगों को लगता है कि यह काम कर रहा है।