Rudraprayag: हिमालय में पिछले कई वर्षों से विभिन्न प्राकृतिक घटनाएं जैसे भूकम्प, हिमस्खलन (एवलॉच), नदी नालों का उफान, पहाड़ी दरकना, और जमीन धसना लगातार बढ़ रहे हैं। यह सब हिमालय की ‘हलचल’ का संकेत है, जो विकास की अंधी दौड़ के कारण मानवीय भूल की वजह से हो सकती है। वैज्ञानिक और आम आदमी, जो इन बातों से दूर रहते थे, अब इस चेतावनी को गंभीरता से समझ रहे हैं।
प्रकृति का संतुलन बिगड़ा
हिमालय अपनी प्राकृतिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए लगातार सक्रिय है। लेकिन विकास के नाम पर हो रहे अनियंत्रित और असंतुलित कामकाज ने इस कच्चे पर्वतीय क्षेत्र के प्राकृतिक संतुलन को भंग कर दिया है। 2013 की भीषण आपदा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब भूस्खलन और बाढ़ ने व्यापक तबाही मचाई थी। आज, 12 साल बाद भी, ग्लोबल वार्मिंग और मानव गतिविधियों के कारण बड़े पैमाने पर हिमस्खलन, पहाड़ी दरकने, नदी नालों का मार्ग बदलने और उफान पर आने की घटनाएं हो रही हैं।
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महाबीर कबि डबराल का कटाक्ष
महाबीर कबि डबराल ने अपने कविता माध्यम से इस मुद्दे पर तीखा कटाक्ष किया है। उनका कहना है कि विकास होना चाहिए, लेकिन वह सही तरीके से होना चाहिए। न तो देहरादून और दिल्ली में बैठे लोग, जो उत्तराखंड की भूगोल और इतिहास से अनजान हैं, विकास की योजना बनाएं और न ही ऐसा विकास जो पर्यावरण को नष्ट कर दे। इसी वजह से हिमालय में इस तरह की प्राकृतिक आपदाएं बार-बार हो रही हैं।
लोकगीतकार बिक्रम कप्रवाण का संदेश
उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगीतकार बिक्रम कप्रवाण ने भी इस संकट पर एक मार्मिक गीत लिखा है, जिसमें उन्होंने लोगों को चेताया है कि अभी भी समय है अपनी गलतियों से सीखने का। उनका संदेश है –”हे मनुष्य तू अभी चेत जा, अभी भी तुम्हारे पास टाइम है। नहीं तो तेरा बड़ा दुखद हर्ष होने वाला है।”
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संतुलित विकास ही समाधान
पहाड़ों का अनियंत्रित विकास हिमालय की प्राकृतिक संरचना को नुकसान पहुंचा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि विकास होना आवश्यक है, लेकिन वह पर्यावरण के संरक्षण के साथ संतुलित और नियन्त्रित तरीके से होना चाहिए। तभी हिमालय अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और स्थिरता बनाए रख सकेगा।