Dehradun: देहरादून में रविवार की सुबह कुछ अलग था। आमतौर पर शांत रहने वाला यह शहर उस दिन सुनहरी उम्मीदों से दमक रहा था। मौका था अखिल भारतीय स्वर्णकार संघ की ‘गोल्ड ऐपरेसल कार्यशाला’ और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का, जिसमें देशभर से आए स्वर्णकार, हस्तशिल्पी और आभूषण उद्योग के विशेषज्ञ जुटे थे।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, मंच पर जैसे ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने माइक संभाला, हर किसी की आंखों में उम्मीद की चमक दिखाई देने लगी। उन्होंने जो बात कही, वह न सिर्फ स्वर्णकारों के दिलों को छू गई, बल्कि एक नई दिशा का संकेत भी बन गई। “उत्तराखंड के पारंपरिक आभूषण जैसे गुलोबंद, नथ, पौंची, चूड़ामणी सिर्फ आभूषण नहीं हैं,” मुख्यमंत्री बोले, “ये हमारी संस्कृति की जड़ें हैं, हमारे पहाड़ की स्त्रियों की पहचान हैं। अब वक्त आ गया है कि इन्हें हम ‘लोकल से ग्लोबल’ की यात्रा पर ले चलें।” उनकी बातें किसी नारे जैसी नहीं थीं, बल्कि एक भावनात्मक अपील थी—ऐसी अपील जो दिल से निकली और सीधे दिलों तक पहुंची।
उन्होंने इस दिशा में ‘स्वर्णकार बोर्ड’ के गठन की भी बात कही—एक ऐसा मंच जो पारंपरिक डिज़ाइनों के संरक्षण, कौशल विकास और वैश्वीकरण की दिशा में ठोस काम करेगा। यह सुनकर सभा में मौजूद कारीगरों की आंखों में चमक आ गई—ठीक वैसी ही चमक जैसी सोने को चमकाने के बाद दिखती है।
मुख्यमंत्री ने यह भी जोड़ा कि अगर स्वर्णकार समुदाय कोई ठोस कार्ययोजना लेकर आता है, तो सरकार हरसंभव सहयोग करेगी। यह आश्वासन सुनकर उपस्थित जनसमूह में एक नई ऊर्जा दौड़ गई।
एक संकल्प, एक शुरुआत
बैठक में शामिल स्वर्णकारों ने हाथ उठाकर संकल्प लिया—कि वे अपने पारंपरिक डिज़ाइनों को आधुनिक रूप देकर न केवल भारतीय बाजारों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पहुंचाएंगे। दिल्ली से आए एक वरिष्ठ स्वर्णकार श्री महेश वर्मा ने कहा, “पहली बार लग रहा है कि हमारी कला को वह पहचान मिलने जा रही है जिसकी वह हकदार है।” देहरादून की युवा डिज़ाइनर कविता नौटियाल ने मंच से बताया कि कैसे वह नथ और चूड़ामणी जैसे डिजाइनों को मॉडर्न ब्राइडल कलेक्शन में ला चुकी हैं, जिसे विदेशों में भी सराहा गया।
‘ज्वैलरी हब’ बनने की ओर
इस आयोजन को उत्तराखंड को एक ‘वैश्विक ज्वैलरी हब’ बनाने की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है। और शायद यह वह शुरुआत है जो न केवल रोजगार के नए रास्ते खोलेगी, बल्कि एक पूरी पीढ़ी को अपनी जड़ों से फिर से जोड़ देगी। जिस तरह से एक साधारण सी धातु कारीगरों के हाथों में आकर बेशकीमती गहना बन जाती है, ठीक उसी तरह उत्तराखंड की यह पहल भी एक नई पहचान गढ़ने वाली है—एक ऐसी पहचान जो पहाड़ों की संस्कृति को दुनिया के मंच तक पहुंचाएगी।