

उत्तर प्रदेश के करीब 4 लाख बेसिक शिक्षकों की नौकरी पर संकट मंडरा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, 5 साल से अधिक सेवा वाले शिक्षकों को अब TET पास करना अनिवार्य होगा। शिक्षक संघ ने इसे अन्याय बताते हुए केंद्र से राहत की मांग की है।
प्रदर्शन कर शिक्षकों ने इसे अव्यवहारिक बताया
Sonbhadra: उत्तर प्रदेश के करीब 4 लाख बेसिक शिक्षकों की नौकरी पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए अनिवार्य रूप से शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) उत्तीर्ण करनी होगी। इस आदेश ने न केवल शिक्षकों को मानसिक तनाव में डाल दिया है, बल्कि उन्हें अपने भविष्य को लेकर गहरी चिंता सताने लगी है।
इस मुद्दे को लेकर उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ और प्राथमिक शिक्षक संघ ने संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र भेजा है, साथ ही गुरुवार को कलेक्ट्रेट परिसर में जोरदार प्रदर्शन भी किया गया। इस दौरान सैकड़ों शिक्षकों ने कलेक्ट्रेट गेट से लेकर कलेक्ट भवन तक पैदल मार्च निकाला और जिलाधिकारी को प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा।
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष रवि भूषण ने कहा कि यह आदेश शिक्षकों की वर्षों की सेवा और अनुभव का अपमान है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, 23 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को छूट दी गई है, लेकिन उसके बाद नियुक्त शिक्षकों को TET उत्तीर्ण करना अनिवार्य किया गया है। अगर वे दो वर्षों के भीतर यह परीक्षा पास नहीं कर पाए तो उन्हें सेवा से बाहर कर दिया जाएगा।
शिक्षक संघ का तर्क है कि सभी शिक्षक उस समय की वैध शैक्षणिक योग्यता और सेवा शर्तों के अनुसार नियुक्त किए गए थे। उस दौर में शिक्षक की पात्रता हाईस्कूल, फिर इंटरमीडिएट, उसके बाद स्नातक और अंततः TET की गई। ऐसे में पीछे जाकर उन शिक्षकों को TET पास करने के लिए मजबूर करना न केवल अनुचित है, बल्कि शिक्षकों के आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है।
संघ ने यह भी कहा कि NCTE और भारत सरकार की लापरवाही के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। यदि समय रहते आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए गए होते, तो आज यह समस्या पैदा नहीं होती। लगभग डेढ़ दशक तक सरकार ने TET को अनिवार्य नहीं किया, और अब अचानक कोर्ट के आदेश से शिक्षकों की नौकरी पर संकट लाकर खड़ा कर दिया गया है।
रवि भूषण ने कहा, 'सरकार ने 2017 में एक ऐसा कानून पास किया था, जिसमें कहा गया कि सभी कार्यरत शिक्षकों को TET पास करना होगा, लेकिन इस कानून की जानकारी समाज में नहीं दी गई। इसे छुपाया गया और अब कोर्ट के माध्यम से लागू किया जा रहा है। हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं।'
NCTE की गाइडलाइंस के अनुसार भी पहले से सेवारत शिक्षक TET की नई शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। संघ ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार और NCTE ने जानबूझकर इतने वर्षों तक TET जैसी योग्यता को अनिवार्य नहीं बनाया, जिससे आज यह संकट उत्पन्न हुआ है। ऐसे में इस जिम्मेदारी की जवाबदेही भी सरकार और संबंधित संस्थाओं पर आती है।
कलेक्ट्रेट में गरजा शिक्षक आंदोलन
संघ ने केंद्र सरकार से मांग की है कि एक विशेष अध्यादेश लाकर शिक्षा अधिकार अधिनियम और NCTE अधिसूचना से पहले नियुक्त शिक्षकों को TET से स्थायी छूट दी जाए। संघ ने कहा है कि सेवा के अंतिम चरण में पहुंच चुके शिक्षक दोबारा परीक्षा नहीं दे सकते और यह उनके आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर गहरा असर डाल रहा है।
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इस पूरे मामले ने शिक्षा जगत में भारी असमंजस और चिंता की स्थिति पैदा कर दी है। यदि केंद्र सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो देशभर में शिक्षक आंदोलन तेज हो सकते हैं। शिक्षक संघ का कहना है कि वे किसी भी सूरत में अपने हक की लड़ाई छोड़ने वाले नहीं हैं।
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प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों ने मांग की है कि केंद्र सरकार तुरंत अध्यादेश लाकर 23 अगस्त 2010 से पहले और शिक्षा अधिकार अधिनियम 2011 से पहले नियुक्त सभी शिक्षकों को TET से स्थायी छूट प्रदान करे।अगर ऐसा नहीं हुआ तो शिक्षक संघ ने प्रदेशभर में व्यापक आंदोलन की चेतावनी दी है।