

प्रयागराज के पद्मश्री डा. श्याम बिहारी अग्रवाल, जिन्होंने वॉश पेंटिंग विधा को पुनर्जीवित किया, का 83 वर्ष की उम्र में हृदयगति रुकने से निधन हो गया। उनके निधन से भारतीय चित्रकला जगत में एक युग का समापन हुआ है।
डा. श्याम बिहारी अग्रवाल
Prayagraj: वॉश पेंटिंग की दुर्लभ और लुप्तप्राय विधा को पुनर्जीवित कर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने वाले पद्मश्री डा. श्याम बिहारी अग्रवाल का शनिवार सुबह निधन हो गया। 83 वर्षीय अग्रवाल जी की हृदयगति रुकने से उनके चक जीरो रोड स्थित आवास पर प्रातः 9 बजे उनका देहांत हो गया। उनके निधन से भारतीय चित्रकला जगत में एक युग का अंत माना जा रहा है।
डा. श्याम बिहारी अग्रवाल का जन्म वर्ष 1942 में हरियाणा के सिरसा कस्बे में हुआ था। उन्होंने बीते 1 सितंबर को ही अपना 83वां जन्मदिन मनाया था। वे विगत कई दशकों से प्रयागराज में निवास कर रहे थे और यहीं से वॉश पेंटिंग विधा का प्रचार-प्रसार कर रहे थे।
उनके विशिष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने 28 अप्रैल 2025 को उन्हें पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने दिल्ली में यह सम्मान प्रदान किया था। इस अवसर पर उनकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी संक्षिप्त भेंट हुई थी, जिसमें उन्होंने प्रयागराज में एक चित्रकला संग्रहालय स्थापित करने की अपनी इच्छा प्रकट की थी।
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डा. अग्रवाल का सपना था कि वॉश पेंटिंग की यह प्राचीन और जटिल विधा युवा चित्रकारों तक पहुंचे। वे चाहते थे कि नवोदित कलाकार इसे सीखें और इस विरासत को आगे बढ़ाएं। इसके लिए उन्होंने कई कार्यशालाएं आयोजित कीं और छात्रों को प्रशिक्षित किया।
उनके निधन की खबर मिलते ही उनके आवास पर शोक संवेदना प्रकट करने वालों का तांता लग गया। उनके परिवार में तीन बेटियां – तूलिका अग्रवाल, डा. ज्योति और सारिका अग्रवाल तथा दो दामाद – राजीव और धीरेंद्र अग्रवाल हैं। नाती आदित्य अग्रवाल ने बताया कि 5 सितंबर तक वे पूरी तरह स्वस्थ थे और एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे।
वॉश पेंटिंग एक पारंपरिक चित्रकला तकनीक है जिसमें विंसर न्यूटन का व्हाट्समैन कागज प्रयोग किया जाता है। पहले रेखा चित्र तैयार किया जाता है, फिर कागज को भिगोकर सुखाया जाता है। उसके बाद सावधानीपूर्वक रंग भरकर उसे फिर से धोया जाता है। यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है, जिससे चित्र में गहराई, चमक और नयापन आता है। डा. श्याम बिहारी इस विधा में अप्रतिम दक्षता रखते थे। डा. श्याम बिहारी अग्रवाल का जाना चित्रकला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। वे केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि एक परंपरा और प्रेरणा के स्रोत थे।