

तीसरे सोमवार को कुन्तेश्वर धाम किन्तूर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी। जलाभिषेक से लेकर भंडारे तक, हर जगह भक्ति और उत्साह की लहर थी। क्या है इस दिन की खास बात जो हजारों लोगों को एक साथ खींच लाई? जानिए इस आयोजन की अनकही कहानी।
बाराबंकी में तीसरे सोमवार की रहस्यमयी महिमा
Barabanki: बाराबंकी के हैदरगढ़ क्षेत्र में सावन मास के तीसरे सोमवार को धार्मिक आयोजन का एक भव्य सृजन देखने को मिला। महाभारत कालीन पुरातन स्थल कुन्तेश्वर धाम किन्तूर, देव वृक्ष पारिजात स्थल, और श्री समर्थ साहेब जगजीवन दास के मंदिरों में शिवभक्तों का आस्था से भरा जनसैलाब उमड़ा। हजारों श्रद्धालुओं ने इस पावन दिन जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करके मनवांछित फलों की प्राप्ति और विश्वमानव कल्याण की कामना की।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, तीसरे सोमवार की सुबह ब्रह्ममुहुर्त से ही कुन्तेश्वरधाम के कपाट खोल दिए गए, जहां भक्तों ने जलाभिषेक का शुभारंभ किया। इस पावन अवसर पर पुलिस प्रशासन ने भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी थी। प्रभारी निरीक्षक कोतवाली बदोसरांय, सन्तोष कुमार, उपनिरीक्षक सुरेश चंद्र तथा अन्य पुलिस बल सदस्यों ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की।
श्री समर्थ साहेब जगजीवन दास के मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर भी भक्तों का हुजूम उमड़ा। हजारों भक्तों ने एक साथ जलाभिषेक कर अपनी श्रद्धा और आस्था का प्रदर्शन किया। वहीं पारुल पल्लवी समाधि स्थल पर स्थापित शिवलिंग पर भी दर्जनों शिवभक्तों ने रुद्राभिषेक किया और विश्व शांति के लिए प्रार्थना की।
इस आयोजन की सबसे खास बात थी कुन्तेश्वरधाम किन्तूर में महंत शीतल दास, जैचन्द्र यादव, मेड़ीलाल मौर्या, संदीप मौर्य समेत अन्य ने मिलकर आयोजित विशाल भंडारे का आयोजन। इस भंडारे में आए श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण कर अपने मन की शांति और आशीर्वाद पाया।
इस पवित्र आयोजन ने स्थानीय लोगों के बीच एकता और सांस्कृतिक समरसता को भी बढ़ावा दिया। हर उम्र के लोग, बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक, इस उत्सव में शामिल होकर शिवभक्ति की गूंज को और गहरा बना रहे थे।
भक्ति के इस पर्व ने सावन के माह की गरिमा को और बढ़ाया है। लोग न केवल अपने व्यक्तिगत सुख-शांति के लिए बल्कि सामाजिक कल्याण और वैश्विक शांति की कामना के लिए भी इस पावन दिन पर मंदिरों में एकत्रित हुए।
धार्मिक आयोजन की सफलता के पीछे प्रशासन की सतर्कता और स्थानीय लोगों का सहयोग था। इस आयोजन ने साबित कर दिया कि जब आस्था और संगठन एक साथ हों तो किसी भी कार्यक्रम को भव्य और सफल बनाया जा सकता है।
इस तरह के आयोजन न केवल धार्मिक भावनाओं को प्रबल करते हैं, बल्कि सामाजिक एकता, शांति और भाईचारे का संदेश भी देते हैं। बाराबंकी के इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि भारतीय संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी और मजबूत हैं, जो हर कठिनाई में भी अटूट रहती हैं। आने वाले वर्षों में भी ऐसे आयोजन निरंतर होते रहेंगे, जो श्रद्धालुओं के मन में भक्ति की नई ज्योति जलाएंगे और समाज को एकजुट करेंगे।