

महंत सुरेंद्र दास का निधन केवल एक साधु की मौत नहीं, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और प्रशासनिक विफलता को उजागर करता है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
महंत सुरेंद्र दास ने त्यागे प्राण
मैनपुरी: जिले के किसनी थाना क्षेत्र स्थित मौजा जटपुरा का रामजानकी आश्रम एक साधारण स्थान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक परंपरा का अहम केंद्र रहा है। इस आश्रम के अध्यक्ष महंत सुरेंद्र दास का निधन केवल एक साधु की मौत नहीं, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और प्रशासनिक विफलता को उजागर करता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता से मिली जानकारी के अनुसार, उनकी मृत्यु के बाद हुए घटनाक्रम ने प्रशासन की निष्क्रियता और आश्रम के साथ किए जा रहे अवैध कब्जे की साजिश को सामने लाया है।
आश्रम पर कब्जे की साजिश और प्रशासन की लापरवाही
महंत सुरेंद्र दास की मृत्यु की वजह आश्रम की भूमि पर अवैध कब्जे की साजिश को माना जा रहा है। आश्रम ट्रस्ट के सदस्य और महंत जी के शिष्य आरोप लगाते हैं कि कुछ स्थानीय अपराधी और भूमाफिया आश्रम की करीब 18 बीघा जमीन पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे। इसमें प्रमुख नाम हिस्ट्रीशीटर रामअवतार उर्फ रघुनंदन दास का है। जो बाबा के भेष में आश्रम में घुसने की कोशिश कर रहा था। ट्रस्ट के अनुसार, इस अपराधी को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है। जिससे अधिकारियों ने बार-बार शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की।
महंत सुरेंद्र दास ने कई बार प्रशासन से मदद की गुहार लगाई थी। उन्होंने 2 और 3 जून को मंडलायुक्त आगरा से मिलकर शपथ-पत्र के साथ सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन जब कोई हल नहीं निकला तब 5 जून को श्रीमद्भागवत कथा और भंडारे का आयोजन हुआ। जिसमें रामअवतार को स्थापित करने की कोशिश की गई। ट्रस्ट ने इसे कब्जे की राजनीतिक साजिश करार दिया है।
महंत की मृत्यु और ट्रस्ट का विरोध
महंत सुरेंद्र दास ने 5 जून की रात अपने सांसारिक शरीर को त्याग दिया। जब उनका पार्थिव शरीर आश्रम लाया गया, तो रामअवतार ने शव को भीतर जाने से रोक दिया। इस पर ट्रस्ट के सदस्य और शिष्य शव को आश्रम के बाहर रखकर धरने पर बैठ गए और अंतिम संस्कार से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि जब तक आश्रम पर कब्जा करने वाले अपराधी को बाहर नहीं किया जाता, वे अंतिम संस्कार नहीं करेंगे।
न्यायिक जांच की मांग
इस मामले में ट्रस्ट ने प्रशासन के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि आश्रम की भूमि को विवादित घोषित करने और तहसीलदार को संचालन की जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है। ट्रस्ट का कहना है कि इस भूमि पर न तो कोई अदालती विवाद है और न ही प्रशासन के पास यह अधिकार था कि वह इस तरह का निर्णय ले।
ट्रस्ट ने उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की मांग की है, जिसमें महंत सुरेंद्र दास के मानसिक उत्पीड़न, अवैध हस्तक्षेप और प्रशासन की लापरवाही की गहनता से जांच की जाए। इसके अलावा, रामअवतार सहित उन सभी अपराधियों पर हत्या के लिए प्रेरित करने, धार्मिक स्थल पर कब्जा करने और धमकी देने के लिए प्राथमिकी दर्ज करने की भी मांग की गई है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि आश्रम में किसी भी आयोजन के लिए ट्रस्ट की पूर्वानुमति अनिवार्य की जाए, और स्थायी पुलिस बल की तैनाती की जाए ताकि भविष्य में इस धार्मिक स्थल पर कुटिल मंसूबों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
न्याय की उम्मीद और धरना जारी
मौके पर प्रशासनिक अधिकारी जैसे एसडीएम, तहसीलदार और भारी पुलिस बल तैनात था, लेकिन ट्रस्ट के सदस्य अंतिम संस्कार पर अड़े रहे। देर रात तक आश्रम परिसर के बाहर धरना जारी रहा। प्रशासन और ट्रस्ट के बीच अब यह सवाल बना हुआ है कि क्या इस पवित्र स्थल पर प्रशासनिक हस्तक्षेप और न्यायपूर्ण कार्रवाई से एक नई शुरुआत हो सकेगी?