उत्तर प्रदेश में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया ने रिपोर्ट आने से पहले ही सियासी हलचल तेज कर दी है। चुनाव आयोग की यह कवायद मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए है, लेकिन बीजेपी और विपक्षी दलों के दावों-जवाबी आरोपों ने इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया है।

उत्तर प्रदेश में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया
स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई नियमित प्रक्रिया है, जिसका मकसद मृत, स्थानांतरित, डुप्लीकेट और फर्जी मतदाताओं के नाम हटाना और नए योग्य वोटरों को जोड़ना है। यूपी में यह प्रक्रिया 1 नवंबर 2025 से चल रही है। हालांकि, बीजेपी नेताओं के बयानों के बाद इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देखा जाने लगा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 14 दिसंबर 2025 को बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक में दावा किया कि SIR के दौरान करीब 4 करोड़ नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं। उन्होंने कहा कि इनमें 85 से 90 प्रतिशत बीजेपी समर्थक हैं। योगी का तर्क है कि जनवरी 2025 की मतदाता सूची में यूपी में 15.44 करोड़ वोटर दर्ज थे, जबकि SIR के शुरुआती फीडबैक में केवल 12 करोड़ नाम ही रिकॉर्ड हुए हैं। इसी आधार पर उन्होंने “4 करोड़ के गैप” की बात कही।
वहीं, पूर्व बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक ने 17 दिसंबर को दावा किया कि कन्नौज के सिर्फ तीन विधानसभा क्षेत्रों में ही करीब 3 लाख वोटरों के नाम कट सकते हैं, जो मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थक हैं।
उनका कहना है कि SIR पूरी तरह लागू हो गया तो 2027 में सपा को बड़ा नुकसान उठाना पड सकता है। हालांकि, यह दावा भी किसी आधिकारिक आंकड़े पर नहीं, बल्कि स्थानीय कार्यकर्ताओं की रिपोर्ट पर आधारित है।
दिलचस्प बात यह है कि योगी आदित्यनाथ जहां कहते हैं कि SIR से बीजेपी समर्थकों के नाम ज्यादा कट रहे हैं, वहीं सुब्रत पाठक का दावा है कि सपा के वोटर ज्यादा प्रभावित होंगे। यानी एक ही प्रक्रिया को लेकर बीजेपी नेताओं के दावे आपस में ही टकराते नजर आ रहे हैं।
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने SIR को वोट काटने की साजिश बताया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा कि अगर 4 करोड़ में से 85 प्रतिशत बीजेपी के वोटर हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि बीजेपी के 3.4 करोड़ वोटर फर्जी थे। उन्होंने चुनाव आयोग से पूरे मामले की जांच की मांग की। विपक्ष का आरोप है कि SIR की आड़ में अल्पसंख्यक, गरीब और कमजोर वर्गों के वोटरों को निशाना बनाया जा रहा है।
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चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि SIR प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है। फिलहाल कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया गया है। ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जनवरी 2026 में आएगी और फाइनल सूची फरवरी 2026 में जारी होगी। तब तक सभी दावे अनुमान और राजनीतिक बयानबाजी माने जाएंगे।
सीएम योगी का दावा शुरुआती फीडबैक और BLO रिपोर्ट पर आधारित माना जा रहा है। उनका कहना है कि कई बीजेपी समर्थक या तो फॉर्म नहीं भर पाए या माइग्रेशन के चलते उनके नाम छूट गए। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि बूथ स्तर पर जाकर नाम जुड़वाने का काम तेज किया जाए। उनका मकसद कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना भी माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि SIR को लेकर बयानबाजी 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी का हिस्सा है। बीजेपी जहां इसे फर्जी वोटरों के खिलाफ अभियान बता रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बता रहा है।
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बिहार और पश्चिम बंगाल में SIR के अनुभव बताते हैं कि इस प्रक्रिया में बड़ी संख्या में युवा वोटर जुड़े, जबकि मृत, डुप्लीकेट और पलायन कर चुके लोगों के नाम कटे। यूपी में भी जब तक यह साफ नहीं हो जाता कि किन वर्गों के वोटर ज्यादा घटे या जुड़े हैं, तब तक किसी एक दल को फायदा या नुकसान बताना मुश्किल है।
फिलहाल SIR रिपोर्ट से पहले सियासत अपने चरम पर है। योगी हों या अखिलेश, दोनों अपने-अपने राजनीतिक हितों के हिसाब से बयान दे रहे हैं। असल तस्वीर तब सामने आएगी, जब जनवरी–फरवरी 2026 में चुनाव आयोग की आधिकारिक SIR रिपोर्ट जारी होगी। तब तक यूपी की राजनीति में यह मुद्दा गरमाया रहेगा।