

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) गोरखपुर ने एक बार फिर अपने उत्कृष्ट चिकित्सा कौशल का परिचय देते हुए एक महिला की जान बचाई है। यह महिला पिछले चार दिनों से खांसी, सांस फूलने और भारी बेचैनी जैसी समस्याओं से जूझ रही थी, जिसका कारण काजू का गलती से सांस की नली में फंस जाना था।
सांस की नली में फंसा काजू बना जानलेवा खतरा
Gorakhpur: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) गोरखपुर ने एक बार फिर अपने उत्कृष्ट चिकित्सा कौशल का परिचय देते हुए एक महिला की जान बचाई है। यह महिला पिछले चार दिनों से खांसी, सांस फूलने और भारी बेचैनी जैसी समस्याओं से जूझ रही थी, जिसका कारण काजू का गलती से सांस की नली में फंस जाना था।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, मामला तब सामने आया जब 53 वर्षीय महिला ने लगातार तकलीफ के चलते स्थानीय अस्पताल में परामर्श लिया। सीटी स्कैन और एक्स-रे में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि उसकी सांस की नली में काजू का एक टुकड़ा फंसा हुआ है। स्थानीय अस्पताल में एंडोस्कोपी की मदद से उसे निकालने की कोशिश की गई, लेकिन वह प्रयास असफल रहा। ऐसे में महिला को तत्काल AIIMS गोरखपुर रेफर किया गया।
AIIMS के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के डॉ. सुबोध के नेतृत्व में डॉ. कनुप्रिया और डॉ. राघव की टीम ने यह जटिल ब्रोंकोस्कोपी प्रक्रिया अंजाम दी। इस प्रक्रिया के लिए वीडियो-ब्रोंकोस्कोप, क्रायो मशीन और डॉर्मिया बास्केट जैसे अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया गया। यह ऑपरेशन ऑपरेशन थिएटर में अत्यंत सतर्कता और तकनीकी सटीकता के साथ किया गया।
इस दौरान एनेस्थीसिया विभाग की डॉ. विजेता बाजपेई और डॉ. प्रियंका द्विवेदी ने संपूर्ण प्रक्रिया में सहयोग प्रदान किया। दोनों विभागों की इस संयुक्त कार्यप्रणाली ने महिला को एक नई ज़िंदगी दी। ऑपरेशन के बाद महिला की हालत स्थिर बताई जा रही है और वह सामान्य रूप से स्वस्थ हो रही हैं।
AIIMS गोरखपुर की कार्यपालक निदेशक मेजर जनरल डॉ. विभा दत्ता की देखरेख और मार्गदर्शन इस पूरी प्रक्रिया की सफलता में अहम कारक रहा। उनकी प्रेरणा और संगठनात्मक दक्षता ने चिकित्सा दल को सटीक और समर्पित ढंग से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया।
यह घटना चिकित्सा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है। यह दर्शाती है कि समय पर उन्नत तकनीक और विशेषज्ञ चिकित्सकों की भूमिका से जटिल से जटिल चिकित्सा समस्या को भी हल किया जा सकता है। AIIMS गोरखपुर न केवल एक संस्थान के रूप में, बल्कि एक जीवन रक्षक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका है। यह केस एक उदाहरण है कि कैसे जागरूकता, तकनीकी संसाधन और चिकित्सा विशेषज्ञता मिलकर असंभव को संभव बना सकते हैं।